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रिक्शा चालक के बेटे ने पहले ही प्रयास में UPSC क्लियर कर प्राप्त की थी 48वीं रैंक, जानें IAS गोविंद की कहानी
जब परिवार चलाने वाला एकमात्र सदस्य रिक्शा चालक हो तो आवश्यक सुविधाएं प्राप्त करना भी एक सफलता के सामान होता है। परंतु IAS गोविंद जायसवाल की यह स्टोरी इस बात का सबूत है कि कड़ी परिश्रम एवं दृढ़ निश्चय के साथ इन सारी कठिनाइयों को पार कर कामयाबी जरूर हासिल की जा सकती है। गोविन्द ने अपने पहले अटेम्प्ट में UPSC एग्जाम में 48 वां रैंक पाने के बाद अपना नाम इतिहास में रिकॉर्ड किया। आइये जानते हैं उनके इस संघर्ष भरें सफर के बारे में। एक मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाले गोविंद अपनी तीन बड़ी बहनों एवं माता पिता के सहित 12×8 फीट के किराए के कमरे में बसेरा करते थे। उनके पिता ही केवल एकमात्र कमाने वाले सदस्य थे। उन्होंने उस्मानपुरा के एक सरकारी स्कूल से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की फिर वाराणसी के सरकारी डिग्री कॉलेज से मैथ्स में ग्रेजुएशन को डिग्री प्राप्त की।
वाराणसी में ग्रेजुएशन पूरी होने के ठीक बाद गोविन्द ने UPSC एग्जाम की प्रिपरेशन के लिए दिल्ली चले गए। मेट्रो नगर में रहने के खर्च का प्रबंधन करने में बेसहाय गोविंद के पिता नारायणम जायसवाल ने अपनी एकमात्र भूमि को 4,000 रुपये में बेच दिया। अपने खुद के खर्चों को कवर करने के हेतु गोविंद मैथ्स की ट्यूशन देते थे एवं अगले 18-20 घंटों में अपनी एग्जाम की प्रिपरेशन करते थे जिसके वजह से 2006 में उन्होंने अपने पहले एटमेप्ट में IAS एग्जाम को पास कर लिया।
गोविन्द के पिता नारायण के पास वर्ष 1995 में लगभग 35 रिक्शे थे। लेकिन पत्नी की बीमरी के उपचार के खर्च के लिए 20 रिक्शे बेचने पड़े। लेकिन फिर भी 1995 में उनका निधन हो गया। 2004-05 में गोविंद को UPSC की प्रिपरेशन और दिल्ली भेजने के हेतु उनके पिता ने बाकी 14 रिक्शे बेच दिए। पढ़ाई में कमी न हो इस के हेतु वह एक रिक्शा स्वयं चलाने लगे। 2006 में गोविन्द के पिता के पैर में टिटनेस हो गया परंतु यह बात उन्होंने गोविंद को नहीं बताई। उनके पिता नहीं चाहते थे की गोविन्द अपनी पढ़ाई छोड़ कर वापस लौट आएं। ऐसे परिस्थिति में उनकी बेटियां बारी-बारी पिता का धन्य रखने को उनके पास रहती थीं।
UPSC की एग्जाम की प्रिपरेशन के दिनों में गोविन्द को कई प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। पढ़ाई के समय कई बार 14 से 15 घंटों के लिए लाइट चली जाती थी जिसके वजह से उन्हें पढ़ने में काफी दिक्कतें होती थी। एक समस्या कम नहीं हो रही थी कि गोविंद के सामने एक और दिक्कतें खड़ी हो जाती। लाइट जाने के बाद उनके पड़ोस में ही जेनेरेटर चलता था जिसके वजह से काफी शोर होता था। पढ़ाई में किसी प्रकार की रुकावट न हो उसके हेतु वह सभी खिड़कियाँ बंद कर एवं कानों में रूई डालकर पढ़ाई करते थे। अनेक कठिन परिश्रम परिस्थितियों ने भी गोविन्द का आत्मविश्वास नहीं तोड़ा एवम कड़ी मेहनत के बाद उन्होंने पहली ही प्रयास में UPSC सिविल सेवा एग्जाम में 48वीं रैंक प्राप्त की।
अपने पिता के बलिदान एवं उनके प्रति विश्वास रखने को गोविन्द ने ज़ाया नहीं जाने दिया और कड़ी मेहनत के बाद यह उपलब्धि प्राप्त की और अपना और अपने पिता का सपना साकार किया।