Connect with us

MOTIVATIONAL

मां बेचती थी शराब, स्नैक्स बेचकर मिले पैसों से खरीदी किताब; बना कलेक्टर

Published

on

WhatsApp

सरकारी नौकरी पाना किसी भी मेहनती स्टूडेंट का सबसे बड़ा सपना होता है। उसके हेतु वे जी-जान से परिश्रम करते हैं तथा पढ़ाई के सिवा उन्हें कुछ भी नहीं दिखाई देता। कुछ ऐसे भी होते हैं जो परेशानी भारी हालत में भी पढ़ाई कर श्रेष्ठ प्रशासनकि पद प्राप्त कर लेते हैं। हम आपको एक ऐसे ही जुझारू स्टूडेंट के परिश्रम के बारे में बताने जा रहे हैं, उनकी गरीबी के चरम को देखा और आज IAS ऑफिसर है।

हम बताने जा रहे हैं महाराष्ट्र के धुले जिले के डॉ. राजेंद्र भारूड़ की। राजेंद्र धुले जिले के आदिवासी भील सोसाइटी से ताल्लुक रखते हैं। उनके IAS बनने की यात्रा इतना कठिन है, उसके बारे में आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते। उन्होंने खुद अपने परिश्रम के बारे में कहा था कि वह एक ऐसे घर में पले-बढ़े जहां शराबियों ही रही थे । खुद उनकी मां शराब बेचा करती थीं।

दैनिक भास्कर में छपी खबर के अनुसार राजेंद्र ने कहा था कि जब वह मां के गर्फ में थे तभी उनके पिता को मृत्यु होगाई थी। पिता के चले जाने के बाद उनके घर में घर का खर्चा चलाने वाला कोई नहीं था। आर्थिक दिक्कतो को झेलते हुए उनके 10 लोगों का परिवार एक समय का खाना भी जुटा नहीं पता था। छोटी सी झोपड़ी में परिवार के 10 लोगों के सहित रहकर उन्हें गुजर-बसर करना पड़ता था। परिवार को चलाने के हेतु राजेंद्र की मां ने शराब बेचना आरंभ कर दिया।

राजेंद्र द्वारा बताया गया कि उनकी मां कमलाबहन मजदूरी करती थीं। मजदूरी से उन्हें मात्र 10 रु. मिल पाते थे, जो परिवार की आवश्कता को पूरा करने के हेतु काफी नहीं था। इसलिए उन्होंने देसी शराब बेचना आरंभ कर दिया। राजेंद्र द्वारा बताया गया कि जब भी उन्हें सर्दी-खांसी होती थी तो, उन्हें दवा की बजाय दारू मिलती थी।

राजेंद्र द्वारा बताया कि जब वह चौथी वर्ग में थे, तब घर के बाहर बने चबूतरे पर बैठकर पढ़ते थे। उस घर में दारू पीने के हेतु आने वाले लोग उन्हें स्नैक्स के बदले पैसे दिया करते थे। उन पैसों से राजेंद्र ने अपनी बुक्स खरीदीं तथा पढ़ाई की। राजेंद्र को 10वीं के एग्जाम में 95% अंक प्राप्त किए थे। 12वीं में उन्हें 90% अंक मिले थे। वर्ष 2006 में मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम पास कर उन्होंने मुंबई के सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया।

2011 में राजेंद्र को कॉलेज के बेस्ट छात्र के रूप में नवाजा गया था। 2011 में ही राजेंद्र ने UPSC का फॉर्म भरा तथा एग्जाम दी। इस एग्जाम में राजेंद्र अच्छे नंबरों से पास हुए तथा कलेक्टर भी बन गए। इस बारे में राजेंद्र की मां को तत्काल नहीं पता चला था। लोग जब घर पर बधाई देने पहुंचने लगे तब उन्हें पता चला फिर वो बस रोती रहीं।

परिश्रम से मिलता है प्रशासनिक पद, बहाने का कोई चांस नहीं
राजेंद्र भारूड़ उन लोगों के हेतु प्रेरणादायक हैं जो सुख-सुविधाओं के बिना ही कड़ी मेहनत से सफलता प्राप्त की। प्रशासनिक पदों के हेतु पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स को बहानों से बचना चाहिए या फिर पढ़ाई छोड़कर अपनी मेधा के अनुसार से दूसरा ऑप्शन चुन लेना चाहिए।