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अंग्रेजी में कमजोर होने के बावजूद ये लड़की कैसे बनी IAS अफसर? जानें सुरभि की सक्सेस स्टोरी
कोई भी युवा के लिए कॉम्पिटिटिव परीक्षा क्लियर करना आसान नहीं होता है। इसके लिए उन्हें वर्षो की परिश्रम के सहित कई त्याग भी करने पड़ते हैं। और अगर आप यूपीएससी सिविल सर्विसेज एग्जाम की प्रिपरेशन कर रहे हैं तो आपकी परिश्रम और दिक्कतें दोगुनी हो जाती है। गांव में रहकर इस एग्जाम की प्रिपरेशन करना और इसको क्लियर करने की इमैजिन करना भी मुश्किल है। परंतु इन इमेजिनेशन से एक कदम आगे बढ़कर ग्रामीण आवरण की एक लड़की ने UPSC एग्जाम को क्लियर कर इस एग्जाम के बारे में पहले से तय सारे मापदंड़ों को तोड़ दिया। इस लड़की ने अपनी कठिन परिश्रम और लगन से इस बात को आनुभूत कर दिया कि, अगर आप एक बार ठान लें, तो आप अपने सपने को पूरा कर सकते हैं।
हम बता रहे हैं मध्य प्रदेश की रहने वाली सुरभि गौतम के बारे में , उन्होंने डिफकल्ट सिचुएशन को पार कर साल 2016 में सिविल सर्विसेज में ऑल इंडिया 50वीं रैंक प्राप्त की। सतना (मध्य प्रदेश) के छोटे से गांव अमदरा में एक वकील-शिक्षिका दंपति के यहां सुरभि का जन्म हुआ था। प्राथमिक शिक्षा के लिए परिवार के अन्य बच्चों की जैसे ही सुरभि का ऐडमिशन भी गांव के सरकारी स्कूल में करवाया गया था। यह हिंदी मीडियम स्कूल था। सुरभि बचपन से ही पढ़ने में काफी तेज थी, परंतु परिवार के अधिकतर सदस्यों के लिए यह कोई खास बात नहीं थी। मध्य प्रदेश के स्कूलों में पांचवीं में भी बोर्ड एग्जाम होती है।
जब पांचवीं का रिजल्ट आया तो टीचर ने सुरभि को बुला कर और पीठ थपथपाते हुए बोला, ‘आपको गणित में शत-प्रतिशत अंक मिले हैं। मैंने बोर्ड एग्जाम में आज तक किसी को सौ में सौ आंक पाते नही देखा। आगे आप बहुत सफल बनेंगी ।’ सुरभि के लिए ये जादुई शब्द थे, जो लाइफटाइम के लिए उनके मन में बस गए। उसके बाद सुरभि शिक्षा के प्रति और गंभीर हो गईं। इसी मध्य उनके जोड़ों में रह-रहकर पीड़ा होने लगी थी, पर वह उसे नजरअंदाज किया करती रहीं। फिर धीरे धीरे दर्द पूरे बॉडी में फैल गया, और एक दिन वह बिस्तर से लग गईं।
सुरभि के बॉडी में जब ज्यादातर दर्द रहने लगा तो उनके माता-पिता सुरभि को लेकर जबलपुर गए। वहां विशेषज्ञ डॉक्टर ने कहा, सुरभि को ‘रूमैटिक फीवर’ है। यह बीमारी हृदय को डैमेज करती है और कुछ हालात में मृत्यु भी हो जाती है। यह जानकर माता-पिता स्तब्ध थे। डॉक्टर ने सुरभि को हर 15 दिन पर पेनिसिलिन का इंजेक्शन लगाने को कहा। गांव में अच्छा डॉक्टर था नहीं, इसी के चलते हर 15वें दिन पर सुरभि को जबलपुर जाना पड़ता था। पर कमजोर स्वास्थ, अभावों के मध्य भी सुरभि ने अपनी शिक्षा को नहीं छोड़ा।
उस समय सुरभि गौतम ने एक साथ कितने मोर्चे पर अपनी लड़ाई लड़ी। सुरभि को दसवीं बोर्ड परीक्षा में गणित के साथ विज्ञान में भी शत-प्रतिशत अंक प्राप्त किए। उन्हें राज्य के प्रतिभाशाली स्टूडेंट में गिना गया। उस वक्त अखबारों में जो खबर छपी उसमें लिखा गया कि सुरभि कलेक्टर बनने का लक्ष्य रखती हैं, जबकि सुरभि के मन में उस वक्त तक ऐसा कोई सपना नहीं था। जबकि इन खबरों के वजह से उनका झुकाव UPSC की तरफ हो गया।
स्कूल से कॉलेज पहुंचने पर इंग्लिश बनी सबसे बड़ी मुश्किल
12वीं में भी अच्छे रिज़ल्ट आने के बाद उन्होंने एक स्टेट इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम क्लियर की और भोपाल के एक इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन्स में दाखिला लिया। सरकारी स्कूल में पढ़ाई के समय वह अपने स्कूल की सबसे होनहार स्टूडेंट थीं। सुरभि जब स्कूल के बाद कॉलेज पहुंची तो वहां उनकी दुनिया बिल्कुल चेंज हुई थी। वह एक हिंदी मीडियम की स्टूडेंट रही थीं और यहां आने वाले अधिकतर बच्चे इंग्लिश मीडियम से थे।
ऐसे में वहां जाकर आरंभ में वह हीन भावना की ग्रशित हो गईं। कल तक जो लड़की अपने स्कूल में फर्स्ट सीट पर बैठती थी। अब वह पीछे बैठने लगी थी। उन्हे इस बात से अच्छा नही लग रहा था कि, कोई उन पर ध्यान भी नहीं देता। परंतु सुरभि ने अपनी हीन-भावना से उबर कर खुद को एक बार फिर प्रस्थापित करने का ठाना। उन्होंने अपनी इंग्लिश पर ध्यान देना सीखना शुरू कर दिया।
इंग्लिश लैंग्वेज से परेशान सुरभि ने अपनी इंग्लिश ठीक करने के लिए खुद से अंग्रेजी में बात करना आरंभ कर दिया। सुरभि हर रोज कम से कम 10 वर्ड मीनिंग याद किया करती थी। सुरभि दीवारों पर वर्ड मीनिंग लिखती थी और उसे दिन में कई बार याद किया करती थी। कहीं से भी सुने हुए फ्रेज और शब्दों को वह ध्यान में रखती थी और अपनी इंग्लिश इम्प्रूव करने के लिए मेहनत करती थी। सुरभि ने इंग्लिश में सपने देखने आरंभ कर दिए। उनके ख्वाब में सब अंग्रेजी में बात किया करते थे। उस समय उनके मान में अंग्रेजी ने ऐसा असर किया कि वो खुद से इंग्लिश में ही बात किया करने लगी।
इसका प्रभाव यह रहा कि सुरभि ने अपने ग्रेजुएशन के फर्स्ट सेमेस्टर में टॉप किया और उसके लिए उन्हें कॉलेज चांसलर अवार्ड मिला। उन्होंने खुद पर काम करने के दौरान खुद को बाहरी लालच से दूरी बनाए रखा। उनके मान में हमेशा ये बात रहती थी कि उन्हें अपने लक्ष्य पूरे करने हैं। इस समय वह अपने अन्य फ्रेंड्स के जैसे मूवी देखने या घूमने नहीं जाती थी। पूरा वक्त अपनी शिक्षा को दिया और ठान लिया कि कुछ बनने के बाद ही वह घूमना-फिरना करेंगी।
कॉलेज में प्लेसमेंट के वक्त सुरभि को टीसीएस कंपनी में नौकरी मिल गई, परंतु उन्होंने ज्वाइन करने से मना कर दिया। उसके बाद उन्होंने लगातार BARC, ISRO, GTE, SAIL, MPPSC, SSC, FCI और दिल्ली पुलिस जैसे कई कंपिटेटिव एग्जामो में भाग लिया और सभी को क्लियर कर लिया। वहीं वर्ष 2013 में सुरभि ने IAS की परीक्षा में भी सफलता प्राप्त किया। उसमे उनकी ऑल इंडिया फर्स्ट रैंक आई। लेकिन सुरभि ने अपना लक्ष्य आईएएस बनना तय कर रखा था। इसलिए, उन्होंने अपनी प्रिपरेशन जारी रखी और साल 2016 में देश का सबसे । मुस्किल माने जाने वाले UPSC एग्जाम में सुरभि ने अपने पहले अटेम्प्ट में 50वीं रैंक प्राप्त की। इस एग्जाम की प्रिपरेशन कर रहे कैंडिडेट को जागरूक करते हुए सुरभि द्वारा कहा गया कि कोई भाषा दीवार नहीं होती, ठान लीजिए तो वह आपके अधिकार में होगी।