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BIHAR

Shandhya motivational story: विपरीत परिस्थितियों के बावजूद, मजदूर पिता की दसवीं संतान संध्या ने हासिल की सफलता

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Shandhya motivational story
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शेखपुरा की बेटियों ने इस कहावत को बखूबी चरितार्थ किया है, “लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती और कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।” बरबीघा नगर क्षेत्र बुल्लाचक मोहल्ला निवासी संध्या कुमारी, जो मेडल लाओ नौकरी पाओ कार्यक्रम के तहत बिहार पुलिस में चयनित हुई, की सफलता किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है।

संध्या कुमारी, माता-पिता के अत्यंत गरीब परिवार की दसवीं संतान, बचपन में बहुत कुछ नहीं था। बचपन में सपने देखना तो दूर, भरपेट भोजन भी नहीं मिलता था। चार वर्ष की उम्र में पिता ने पास के सरकारी स्कूल में दाखिला लिया। स्कूल में उपलब्ध सरकारी सुविधाओं से शाम को समाप्त करने की उम्मीद जगी थी। उसकी जिंदगी ने कक्षा आठवीं में एथलेटिक्स की तैयारी करने वाली नीतू कुमारी से दोस्ती करने से एक नया मोड़ लिया।

रग्बी खेलने वाली संध्या ने 2015 से 2023 के बीच राज्य के लिए 15 मैच खेलते हुए स्वर्ण पदक जीता।पिछले साल सरकार ने संध्या कुमारी को बिहार दरोगा के लिए मेडल लाओ नौकरी पाओ के तहत चुना, जिससे परिवार खुश हो गया।

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इस दौरान संध्या को भी कई सामाजिक विरोधों का सामना करना पड़ा। संध्या ने इस सफलता को अपने मजदूर पिता और खेल शिक्षक विशाल कुमार को श्रेय दिया।उन्होंने समाज की बेटियों को हालात से घबराने की बजाय लड़कर सफलता हासिल करने का मंत्र सिखाया।