Connect with us

MOTIVATIONAL

लगभग 200 भिखारी को इस व्यक्ति ने उपलब्ध कराया रोजगार, उनकी जिंदगी को सुधारने के लिए कर रहे प्रयास

Published

on

WhatsApp

कोविड–19 का दौर लोगों के जीवन का सबसे कठिन समय था। इसने देश के आर्थिक, शिक्षा के साथ अन्य क्षेत्र को प्रभावित किया। इस समय में कई के रोजगार छूट गए और कई बदलाव हुए। ऐसे ही कुछ बदलाव हैं जिससे लोगों का जीवन बदल रहा है। इस कठिन में कई लोगों के रोजगार छूट गए और अपना जीवन व्यतीत करने के लिए भीख मांगने का समय आ गया है। फिर भी हालातों से न हारते हुए रोजगार कर रहे हैं।

सोनू झा बिहार के समस्तीपुर जिले के शाहपुर पटोरी गाँव के रहने वाले हैं। रोजगार की तलाश में सोनू के परिवार पहले ही लखनऊ आ गए। सन् 2001 में बीमारी की वजह से उनके पिता का देहांत हो गया। उनके पिता के देहांत के बाद सोनू को घर की ज़िम्मेदारी लेनी थी। सोनू की मां और बहनें भी मजदूरी कर आर्थिक योगदान दे रही हैं। सोनू ने बताया कि शरद भैया ने उनको शेल्टर होम लेकर गए। इस शेल्टर होम में मुफ्त में खाने और रहने की सुविधा है। शरद ने दो महीने पूर्व सोनू को दस हजार रुपए देकर खिलौने का ठेला लगवा दिया। इस ठेले से सोनू प्रत्येक दिन दो सौ से तीन सौ बचा लेते थे।

शरद उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के माधवगंज ब्लॉक के मिर्जागंज गाँव के रहने वाले हैं। शरद 2 अक्टूबर 2014 से लखनऊ में शभिक्षावृत्ति मुक्त अभियान का कार्यभार संभाला हुए हैं। 15 सितंबर 2015 में शरद ने बदलाव नामक गैर सरकारी संस्था की शुरुआत की। यह संस्था लखनऊ में भिखारियों के लिए आवास उपलब्ध कराती है। शरद के तीन हजार भिक्षुकों पर रिसर्च में भिक्षुकों ने कहा कि अगर सरकार उनके लिए आवास उपलब्ध कराती है तो उन्हें भीख मांगने की जरूरत ही नहीं। लखनऊ में भीख मांग रहे भिखारियों में 88 प्रतिशत भिखारी उत्तर प्रदेश के और 11 प्रतिशत अन्य राज्यों से हैं। इनमें भी 31 प्रतिशत भिखारी 15 वर्षों से भीख मांग कर जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

शरद ने लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास में विगत वर्ष में 225 और कोरोना काल में 30 लोगो को व्यापार में मदद कर रहे है। कोरोना की वजह से जिनका रोजगार छूट गया था वे लोग भी इनमें शामिल हैं। शरद लगभग सात वर्षों से इन भिखारियों के बीच काम कर रहे हैं। शरद ने व्यक्तिगत कुछ समाजसेवी और कुछ संस्थाओं से मदद लेकर इन्हें आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया। इसके साथ ही उन्होंने बच्चों को पढ़ने के लिए एक निशुल्क पाठशाला का निर्माण कराया है।

आज भी शरद एक बैग साथ में लिए हुए भिखारियों से बाते करते दिख जाते हैं। शरद पटेल का कहना हैं कि कोरोना समय में भिखारियों की संख्या में वृद्धि हो रहे हैं। इस कोरोना काल में शरद ने 30 लोगों को भीख माँगना छुड़वाकर उन्हें रोजगार से जोड़ा है।

सामाजिक कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी लिस्ट में देखा गया कि पर्वतीय प्रदेशों में भिखारियों की संख्या काफी कम है। उत्तराखंड में भिखारियों की संख्या 3320, हिमाचल प्रदेश में भिखारी की संख्या 809 और दिल्ली में भिखारियों की संख्या 2187 है। उसके अलावा दमन और दीव में 22 और लक्षद्वीप में 2 भिखारी हैं। वहीं अरुणाचल प्रदेश में 114, नगालैंड में 124, मिजोरम में सिर्फ 53 भिखारी हैं।

धनीराम रैदास 53 वर्ष के हैं। वे एक बड़े शोरूम में पर्दे और गद्दियों के कवर सिलने का काम करते थे। एक हादसे में उनका पैर टूट गया और उन्हें आराम करने की सलाह दी गई। इसी बीच कोरोना काल आ गया और उन्हें काम से निकाल दिया गया। धनीराम ने हनुमान सेतु मंदिर के बाहर भीख मांग कर किसी प्रकार से चार–पांच महीने गुजारा किया।

जब से धनीराम शेल्टर होम लाया गया है, उन्हे काफी सुकून मिला है। कुछ दिनों पहले ही शरद ने धनीराम के लिए एक सिलाई मशीन खरीदी। उससे वे सिलाई करते हैं और प्रत्येक दिन में सौ रुपए कमा लेते हैं। ऐशबाग मील रोड पर शेल्टर होम का निर्माण किया गया जिसे नगर निगम द्वारा संचालित किया जाता है। इस शेल्टर होम में करीब 22 हैं।

अजय कुमार एक दिव्यांग है। अजय अपनी ट्राई साइकिल पर एक छोटी सी दुकान खोलकर मास्क, चिप्स, कुरकरे, बिस्किट जैसे समान बेचते हैं। कुछ महीने पहले ही वे शेल्टर होम आए हैं। शरद ने अजय की दुकान खुलवा दी है जिनसे वे करीब हजार रूपए कमा लेते है।

शरद के द्वारा भिखारियों को लेकर रिसर्च किया गया। इनमें 65 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो नशे के आदी हैं जिसमें 43 प्रतिशत तम्बाकू और 18 प्रतिशत बीड़ी, सिगरेट, स्मैक जैसे चीजों का सेवन करते हैं। इनमें से 19 प्रतिशत भिखारी तम्बाकू, धूम्रपान और शराब का सेवन करते हैं। 38 प्रतिशत भिखारी सड़क पर रात गुजारते हैं जिनमे 31 प्रतिशत के पास झोपड़ी है जबकि 18 प्रतिशत के पास कच्चे मकान और 8 प्रतिशत के पास पक्के मकान हैं। 31 प्रतिशत लोग गरीबी, 16 प्रतिशत विकलांगता, 14 प्रतिशत शारीरिक अक्षमता, 13 प्रतिशत बेरोजगारी, 13 प्रतिशत पारम्परिक और 3 प्रतिशत लोग बीमारी की वजह से भीख मांग रहे हैं। इनमें 38 प्रतिशत भिखारी विवाहित और 23 प्रतिशत अविवाहित हैं जिनमे से 22 प्रतिशत विदुर और 16 प्रतिशत विधवाएं शामिल हैं। 66 प्रतिशत से अधिक भिखारी व्यस्क हैं जिनकी उम्र 18 से 35 वर्ष के बीच है। 28 प्रतिशत भिखारी बूढ़े हैं।वहीं पांच प्रतिशत भिखारी की उम्र 5 से 18 वर्ष के बीच हैं।

इनके बीच 67 प्रतिशत अशिक्षित भिखारी हैं, लगभग 7 प्रतिशत भिक्षुक साक्षर हैं और 11 प्रतिशत भिखारी पांचवी तक और 5 प्रतिशत आठवीं तक पढ़े हैं। 4 प्रतिशत दसवीं पास और 1 प्रतिशत स्नातक होने के बावजूद भीख मांग रहे हैं। शरद कहते हैं की उनके पास इतने पैसे और संसाधन नहीं हैं जिससे वो सभी भिखारियों को रोजगार से जोड़ सकें। अगर उन्हें सहयोग मिले तो यह काम मुश्किल नहीं है। शरद को दिल्ली की गूंज नमक संस्था सहयोग दे रही है। इसकी ही वजह से कोरोना काल में भिखारियों को रोजगार उपलब्ध कराने में सफल हुए।