MOTIVATIONAL
राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर मिले ऐसे जिज्ञासु किशोरों से, जो इनोवेशन में दिखा रहे दम…
महान वैज्ञानिक आइंस्टाइन कहते थे कि सबसे महत्वपूर्ण बात है हमारे मन में किसी चीज को लेकर प्रसन्न उठना यानी जिज्ञासु होना। यदि आप जिज्ञासु हैं तो रोज जीवन में कुछ न कुछ उपयोगी बिल्कुल खोज लाएंगे। हो सकता है कि उस और में परिश्रम करें तो कुछ बड़ी चीजों की इनोवेशन हो जाए, उससे आपका ही नहीं औरों को भी फायदा हो। राष्ट्रीय विज्ञान दिवस (28 फरवरी) के अवसर पर मिलते हैं कुछ इसी प्रकार के जिज्ञासु किशोरों से, जो इनोवेशन में दिखा रहे हैं दम…
पुणे की 15 साल के जुइ केसकर के अंकल नौ वर्ष से पर्किंसन बीमारी से ज्रसित थे। जुइ के मुताबिक, उनका पूरा उपचार शरीर में होने वाले कंपन के इतिहास पर आधारित था। इसका आरंभिक चरण था कि पहले कंपन को नापा जाए। इसके हेतु किसी डिवाइस की आवश्कता थी। अंकल को दर्द से परेशान देखकर जुइ को बड़ा निराश होता थी। वह उनके उपचार के हेतु कुछ ठोस करना चाहती थीं।
पिछले वर्ष कोरोना की दूसरी वेव में जब लाकडाउन हुआ था तब उन्हें इस दिशा में सोचने का अच्छा अवसर मिला। स्कूल आनलाइन होने से जुइ ने यूट्यूब व वेबसाइट इत्यादि की सहायता से कंप्यूटर प्रोग्राम को सीखा तथा जे ट्रीमर-3डी नामक डिवाइस बनाने में लग गयीं। इस फील्ड में उनके पिता ने भी खूब सहायता की। यह पहने जाने वाला गैजेट है, उसमें सेंसर, एक्सलरेमीटर तथा गाइरो मीटर लगे हुए हैं जो साफ्टवेयर से कनेक्ट होते हैं। यह पर्किंसन से ग्रसित लोगो में होने वाले कंपन को ट्रैक करता है। उसे डाक्टर को उपचार करने में सहायता मिलती है। जुइ के इस इस्तेमाल करने वाले डिवाइस का पेंटेंट किया जा चुका है। अपने जिज्ञासु माइंड के हेतु उन्हें कई राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले हैं। इनमें सबसे बड़ा पुरस्कार है प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार-2022।
किफायती है थर्मोइलेक्ट्रिक स्टोव जेनरेटर : आजमगढ़ (उप्र) जिले के धड़वल गांव को निवासी 12वीं के स्टूडेंट प्रांजल श्रीवास्तव ने बताया हैं कि वह जब भी छुट्टियां मनाने अपने गांव गए थे तो देखते थे कि वहां विद्युत आपूर्ति सही प्रकार से न होने से माताओं को अंधेरे में खाना बनाने, दूसरे जरूरी कार्य करने के हेतु दिक्कत होती मजबूर में करना ही पड़ता था। सौर ऊर्जा एक बढ़िया विकल्प हो सकता था, परंतु यह एक महंगा सुविधा है उसका खर्च सभी वर्ग के लोग खरीद नहीं कर सकते हैं। ऐसे में क्यों न सस्ती तथा इस्तेमाल करने डिवाइस बनायी जाए। उसके बाद प्रांजल अपने कार्य में लग गए। उन्होंने जरूरी उपकरण बनाने के हेतु एलपीजी गैस स्टोव से निकलने वाली एनर्जी के बारे में सोचा। वह बताते हैं, ‘एलपीजी सभी घरों में जरूर होती है। मैंने एक सर्वे में पढ़ा था कि हरवर्ष 30 प्रतिशत एलपीजी गैस आवश्कता से ज्यादा आंच में बर्बाद हो जाती है।‘
प्रांजल ने इंटरनेट पर पेल्टीयर डिवाइस के बारे में पता लगाया जिसे एक ओर से गर्म करने तथा दूसरी ओर से ठंडा करने पर विद्युत एनर्जी उत्पन्न होती है। उसके बाद एक स्टैंड की सहायता से गैस के बर्नर से ऊपर की बजाय अगल-बगल से निकल रही आंच से गर्मी लेकर पेल्टियर डिवाइस तक पहुंचाया। उसके मध्यम से ऊर्जा को एक सुपर कैपेसिटर में एकत्र कर एक यूएसबी पोर्ट के जरिए छोटे इलेक्ट्रानिक उपकरण या एलईडी बल्ब को जलाया जाएगा । प्रांजल बताते हैं कि करीब हर घर में तीन घंटे तक गैस स्टोव जलता है। इस तरीके से इस डिवाइस से करीब चार घंटे तक एलईडी बल्ब जलाने या फोन चार्ज करने भर की एनर्जी प्राप्त हो जाती है। डिवाइस बनाने में सिर्फ पांच सौ रुपये की लागत आई।
हादसे से बचाएगी सिक्योरिटी लाइट , चार पहिया वाहन चालकों के हेतु साइड देखना बड़ी दिक्कत होती है। कई बार यही हादसे की कारण बनती है। उससे छुटकारा पाने के हेतु प्रयागराज (उप्र) में ज्वाला देवी सरस्वती विद्यामंदिर इंटर कालेज, गंगापुरी में एस्टेब्लिश अटल टिंकरिंग लैब से जुड़े बाल नवोन्मेषियों ने सिक्योरिटी लाइट फार व्हीकल गाड़ियों की सुरक्षा के लिए लाइटका माडल प्रिपेयर किया है। यह माडल अटल टिंकरिंग लैब से जुड़े स्टूडेंट के हेतु राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित कंपिटेटिस में भी रखा गया था, जहां इसे सराहा गया। उम्मीद है कि माडल को परिष्कृत कर जल्द ही सभी वाहनों में उपयोग किया जाने लगेगा।
सिक्योरिटी लाइट फार व्हीकल का माडल बनाने में कक्षा नौ के स्टूडेंट असीम सिंह, अंशुमान सिंह व हर्ष पटेल ने लगभग छह महीने परिश्रम की। मार्गदर्शन अटल टिंकरिंग लैब प्रभारी विज्ञान टीचर अमित वर्मा ने किया। यह माडल अल्ट्रासोनिक सेंसर पर काम करता है। इसे प्रिपेयर करने में एलईडी, मेटल प्लेट, पावर बैकअप (गाड़ियों में प्रयोग होने वाली बैटरी) आर्डिनो, बजर, जंपर, वायर का उपयोग किया गया। जिस वाहन में यह डिवाइस लगेगा उसके पास से यदि कोई दूसरा वाहन या कोई भी चीज जाएगी तो स्टेयरिंग के पास लाइट जल जाएगी तथा बजर बजने लगेगा। उसके चालक को सतर्क होने में सहायता मिलेगी। माडल बनाने में सम्मिलित अंशुमान बताते हैं कि अभी जो महंगी गाड़ियां आ रही हैं उनमें चलाने ने पीछे की चीजें देखने के हेतु स्टेयरिंग के पास एलसीडी का उपयोग करते हैं। महंगे कैमरे व अन्य उपकरण भी होते हैं उसमे दाम बढ़ जाती है। सिक्योरिटी लाइट फार व्हीकल का उपयोग होने पर कीमत 15 हजार तक कम हो सकती है।
नवोन्मेषी दल में सम्मिलित हर्ष पटेल बताते हैं कि इस माडल में स्टेयरिंग के पास पांच एलईडी लगाई जाएंगी, वहीं बजर भी रहेगा। अल्ट्रासोनिक सेंसर वाहन में रहेगा। प्रोग्रामिंग कर फिक्स किया जाएगा कि दूसरा वाहन कितने में लगभग आए तो सेंसर चालक को सूचना देने के हेतु बजर बजाए तथा स्टेयरिंग के पास लगी लाइट जल जाए।
छोटे किसानों की आसा बनी ‘सब्जी कोठी’ : बिहार राज्य के भागलपुर, नाथनगर के नया टोला दुधैला की में निवास करने वाले निक्की कुमार झा ने अपने स्टार्टअप प्रोजेक्ट ‘सप्तकृषि’ के जरिए ‘सब्जी कोठी’ का निर्माण किया है। यह किसी भी मौसम और जलवायु में अच्छा और एक ही प्रकार से कार्य करता है। सब्जी कोठी एक माइक्रो क्लाइमेटिक स्टोरेज है, उसमे सब्जियां तीन से लेकर 30 दिनों तक बिलकुल फ्रेश रहती हैं। उसके हेतु थोड़ा पानी और कम से कम 20 वाट बिजली की आवश्कता होती है। सब्जी कोठी तीन श्रेणियों में बनवाई गई है। उससे छोटे किसानों तथा रेहड़ी पर सब्जी बेचने वाले किसानों को विशेष लाभ होगा। उसका आकार बक्सा के प्रकार का होता है। उसमे ज्यादातर एक हजार किलो तक सब्जियां स्टोर कीया जा सकता हैं, हालाकि छोटे किसानों तथा रेहड़ी के सहित सब्जी कोठी में दो सौ से ढाई सौ किलो तक सब्जियों को रखा जा सकता है।
सामान्य सब्जी कोठी का वेट आठ से नौ किलो होता है। इसे आसानी से कहीं भी ले जाया जा सकता है। जहां बिजली की परेशानी है, वहां इसे सोलर ऊर्जा से चलाया जा सकता है। निक्की द्वारा बताया गया हैं कि सब्जी कोठी को सात दिनों तक अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग जिले के हार्टीकल्चर डिपार्टमेंट में उपयोग के लिए रखा गया, जो फिट पाया गया। उसकी आरंभिक सबसे पहले आइआइटी पटना से आरंभ हुई। उसके बाद आइआइटी कानपुर से तकनीकी मदद मिला। शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी आफ एग्रीकल्चर साइंस एंड टेक्नोलाजी के इन्क्यूबेशन सेंटर से लैब तथा फंडिंग मिली। अभी अरुणाचल प्रदेश, असम, कानपुर व भागलपुर में सब्जी कोठी का उपयोग हो रहा है। निक्की के पिता सुनील कुमार झा कहलगांव में में फिजिक्स के टीचर हैं। निक्की ने इकोलाजी और एनवायरमेंटल साइंस में मास्टर की डिग्री ली है। उन्हें पर्यावरण रत्न अवार्ड, आर्ट एंड मैनेजमेंट अवार्ड, यंगेस्ट आथर अवार्ड, साल्व्ड चैंपियन अवार्ड वर्ष 2021 व भारत सरकार का यूथ अवार्ड 2021 दिया जा चुका है। सब्जी कोठी को वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड द्वारा क्लाइमेट साल्वर अवार्ड 2020 से भी नवाजा गया है।
प्रक्षेपण के बाद वापस धरती पर आ सकता है यह राकेट : पूर्वी चंपारण (बिहार) के चार स्टूडेंट ने इंटरनेट की सहायता और टीचर के निर्देशन में एक ऐसे राकेट को बनाया है, जो आकाश में 300-400 मीटर की ऊंचाई उपर तक जाने के बाद रिटर्न जमीन पर आ सकता है। इसका दोबारा उपयोग किया जा सकता है। इसकी लंबाई मात्र 50 सेंटीमीटर है। वेट 70 ग्राम है। उसका नाम अल्फा-1 रखा है। दरअसल, मोतिहारी नगर के दयानंद एंग्लो वैदिक (डीएवी) पब्लिक स्कूल में 10वीं में पढ़ने वाले आयुष कुमार, कौटिल्य वीर, अपूर्व कुमार और रितिक कुमार वर्ग छह से ही विज्ञान से जुड़े भिन्न भिन्न प्रोजेक्ट पर कार्य करते रहे हैं। इसी समय अंतरिक्ष में उपग्रह भेजने में उपयोग होने वाले राकेट के प्रति उनकी जागरूकता बढ़ी। उसके बाद उन्होंने फैसला लिया कि वे इंटरनेट की सहायता लेकर इस दिशा में आगे बढ़ेंगे। उसके बाद उन्होंने लोहे व प्लास्टिक की सहायता से राकेट निर्माण किया। पैराशूट के हेतु बाजार से खरीदे गए कपड़े व रस्सी इत्यादि का इस्तेमाल किया। राकेट को उड़ाने के हेतु सी-67 इंजन की खरीदारी आनलाइन की। इसका वेट 24 ग्राम है। यह अमेरिका में बना है। स्टूडेंट द्वारा बताया गया कि इसमें पोटैशियम नाइट्रेट, चारकोल, सल्फर इत्यादि से मिलकर बना ईंधन का इस्तेमाल होता है। राकेट को रिमोट से कंट्रोल किया जा सकता है। उसमे लगा पैराशूट प्रक्षेपण के बाद हवा में स्वत: खुल जाएगा। इसे निर्माण में 10 हजार रुपये लागत का खर्च हुए हैं। दिलचस्प बात तो यह है कि गत 15 फरवरी को उड़ाकर उसका सफल परीक्षण भी किया गया।
विज्ञान के प्रति जागरूकता बढ़ाने की जरूरत : मुझे तकनीक की सहायता से कुछ नया निर्माण करना बहुत पसंद है। जबकि अभी तक मैंने कुछ आशिक कार्य नहीं किया है परंतु बड़ी होकर मैं इसी फील्ड में कुछ करना चाहूंगी। विज्ञान को लेकर हमारे देश में जागरूकता की आवाकता है जिसे और बढ़ाने की जरूरत है, हालाकि हर बच्चा इसमें रुचि ले तथा इनोवेशन की दिशा में आगे बढ़े। हर विषय चाहे वह लड़का हो या लड़की, सबको एक्सप्लोर करने की छूट हो। उन पर किसी तरह का दबाव नहीं दिया जाना चाहिए।
बच्चों को खिलने दें खुद से : मेरा कहना है कि ने किट से लेकर डिस्पेंसर, फेस शील्ड तथा बहुत कुछ डेवलप किया। अभिभावकों एवं शिक्षकों से एक अपील करना चाहूंगा कि बच्चों की स्पून फीडिंग न करें। उनके नाम पर भिन्न भिन्न इनोवेशंस कॉम्पिटेटिव में अपने आइडियाज न भेजें। बच्चों को खुद से खिलने दें। उनके पास बहुत कुछ है बताने और करने के लिए। उनका जिज्ञासुपन ही उन्हें सवाल करने के लिए प्रेरणा देता है। तभी वह किसी भी दिक्कतों का हल निकालने की दिशा में सोच पाते हैं। इसके हेतु उनका उचित मार्गदर्शन करना चाहिए। बच्चों को अवार्ड मिले या न मिले। उनके विचार में दम होना चाहिए।