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ये महिला बनी देश की पहली नेत्रहीन IFS ऑफिसर, आप भी करेंगे इनके संघर्ष एवं जज्बे को स्लमाम, जानिए इनकी सफलता की कहानी
बेनो जेफिन जन्म से ही 100 फीसदी नेत्रहीन हैं। वह पैदाइशी देख नहीं सकती, इसके बाद भी अपनी योग्यता के बल पर भारतीय विदेश मंत्रालय में सेवा दे रही हैं। हम बात कर रहे हैं चेन्नई की रहने वाली भारत की पहली इंडियन फॉरेन सर्विस ऑफिसर (IFS) बेनो जेफिन की। आज वो UPSC परीक्षा की तैयारी कर रहे लाखों उम्मीदवारों के लिए प्रेरणा बनी हुई हैं।
आज हम आपको एनएल बेनो जेफिन के सफलता और संघर्ष की कहानी बताएंगे। बेनो जेफिन अभी मिनिस्ट्री ऑफ इंडियन एक्सटर्नल अफेयर्स में अपनी सेवा दे रहीं हैं। जहां आंशिक दृष्टिहीन व्यक्ति को भी सुपात्र नहीं माना जाता है, वहां 100 फीसदी दृष्टिहीन महिला की नियुक्ति एक मिसाल पेश करती है।
इनके पिता ल्यूक एंथन चार्ल्स भारतीय रेलवे के कर्मचारी थे, एवं उनकी मां मैरी पदमजा होम मेकर। बेनो जेफिन की प्रारंभिक शिक्षा चेन्नई से की थी। बेनो ने स्टेला मैरिस कॉलेज से अपना ग्रेजुएशन एवं लॉयला कॉलेज से पोस्ट ग्रेजुएशन किया। बेनो कहती हैं कि मेरा परिवार कभी मुझे विकलांग होने का अहसास नहीं दिलाया। और मेरे स्कूल में सभी शिक्षक ने भी हर मोड़ पर मेरा साथ दिया। बेनो बताती हैं कि स्कूल टाइम में ही मैंने यह सोच लिया था कि मुझे भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाना है। और इसके लिए मैंने ब्रेल में लिखी हुई किताबे ढूंढी। इसके बाद चेन्नई में रहकर IAS की तैयारी की। कंप्यूटर में ऐसे सॉफ्टवेयर डलवाए जो आवाज पर काम करते हैं, जिसे सुनकर मैं इंटरनेट के जरिये तैयारी के लिए सामग्री को ढूंढ पाई। मेरी माँ ने मुझे हमेशा संघर्ष करते रहना सिखाया। वह प्रतिदिन मुझे अखबार पढ़कर सुनाती थीं। तथा घंटों मुझे सामान्यज्ञान की किताबें पढ़कर सुनाया करती थीं।
मेरे पिता मेरे लिए ब्रेल में उपलब्ध सामग्री का इंतजाम करते थे। इसके अलावा मैं टीवी पर न्यूज सुनती थी। ऐसे में मुझे बातों को याद रख पाना सहज होता गया। साथ हीं मैंने ब्रेल लिपि में लिखी हुई तमिल एवं अंग्रेजी की किताबे पढ़कर तैयारी की। बेनो जेफिन बताती है कि, मैंने सुना था की एक रेवेन्यू ऑफिसर की नियुक्ति हुई थी, जिसने एक्सीडेंट में अपनी एक आंख खो दी थी। इस घटना ने मेरे अंदर हौसला दी और मेरी आस बंधे रखी। और पूरी लगन से मैं परीक्षा की तैयारी कर रही थी। एनएल बेनो जेफिन के लिए यह फसर काफी कठिन था। नेत्रहीनता उनके रास्ते की सबसे बड़ी बाधा थी। बेनो ने वर्ष 2013-14 सिविल सेवा एग्जाम में 343 रैंक हासिल की थी। रैंक के अनुसार उन्हें IFS ऑफिसर नियुक्ति किया जाना था, लेकिन नेत्रहीन होने के कारण उनकी नियुक्ति एक साल तक लटकी रही।
वर्ष 2015 में उन्हें फॉरेन मिनिस्ट्री में पद सौंपा गया। बेनो देश की पहली ऐसी नेत्रहीन ऑफिसर हैं, जिन्हें विदेश विभाग में नियुक्ति मिली है। बेना कहती हैं एग्जाम क्लीयर करने के बाद इंटरव्यू में सभी सवालों के सही जवाब दिए। तब मिनिस्ट्री ने भी अपनी पॉलिसियों में लचीलापन लाकर मेरा सपोर्ट किया और मैं विदेश मंत्रालय में नियुक्त की गई। इंटरव्यू में मुझसे अधिकतर सवाल विदेश नीति एवं भौगोलिक परिस्थितियों के बारे में ही पूछे गए थे। बेनो कहती है कि, मैं एक बार में एक ही काम पूरी लगन के साथ करना पसंद करती हूं। लोग मेरे लिए क्या सोचते हैं, इस पर मैं ध्यान नहीं देती कभी। मैं अपना काम पूरी जिम्मेदारी और ईमानदारी के साथ करते रहना चाहती हूं। और अपने निर्णयों पर अड़ी रहती हूं। पूर्ण रूप से डिसेबिल होना ही संघर्ष की पहली सीढ़ी है। जहाँ एक तरफ लोगों की सहानुभूति आपको विचलित करती है। वहीं दूसरी तरफ लोगो के एवं परिवार की उम्मीदें आपसे बढ़ जाती हैं। ऐसे में आगे बढ़ना और भी कठिन हो जाता है। लेकिन प्रयास सभी को करनी चाहिए।