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मंदिरों से फेंके जाने वाली सामग्री का उपयोग करके नई क्रिएटिव चीजे बना रहे आकाश, जाने पूरी कहानी

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क्या आपने कभी कल्पना किया हैं कि मंदिरों में इस्तमाल हो चुके फूल-चढ़ावे इतादी से भी सजावटी वास्तु बनाई जा सकती हैं। इस कार्य को साकार किया है उत्तर प्रदेश के निवासी आकाश सिंह ने। कैसे हुई उनके इस क्रिएटिव सफर की शुरुआत, चलिए जानते है
मूर्तियों को निर्माण के हेतु आकाश नारियल की भूसी और राख के मिश्रण से एक मजबूत बाइंडर बनाया करते हैं। फिर उन मूर्तियों या अन्य प्रकार कलाकृतियों में ढाला जाता है। उनके इस कार्य को लेकर ‘एशेज टू आइडल्स’ नाम की एक डॉक्यूमेंट्री भी बनाई जा चुकी है। वह 60 से अधिक मंदिरों से ऐसी सामग्री कलेक्ट कर रहे हैं।

क्या चीज या घटना किसी को प्रोषित कर जाए, कुछ पता नहीं होता। उत्तर प्रदेश में जेवर के समीप एक गांव के निवासी 21 साल के आकाश सिंह को भी कुछ अच्छा करने की प्रेरणा मिली मंदिरों से फेंके जाने वाली सामग्री से। वो मंदिर से निकलने वाले नारियल, फूल इत्यादि का उपयोग करके नई क्रिएटिव चीजे बना रहे हैं। इस प्रकार आकाश न सिर्फ झील में फेंके गए मंदिर के कचरे की मात्रा को कम कर पाएंगे, बल्कि उसने जेल के कैदियों के हेतु काम के मोका भी पैदा किए हैं।

सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लेने के बाद आकाश द्वारा 2018 में अपनी खुद की एक कंपनी बनाई। इस पर उन्होंने कहा हैं की, ‘तब मैं नौवीं क्लास में था, जब सीबीएसई विज्ञान मेले के लिए मेरे एक साइंस प्रोजेक्ट को सेलेक्ट किया गया था। इसने मुझे अपनी सर्च को जारी रखने के लिए उत्साहित किया। कॉलेज के समय में अकसर मैं नजदीक के एक मंदिर में जाया करता था, जहां एक तालाब भी था। परंतु वह तालाब मंदिर से फेंके जाने वाले कचरे की कारण से पूरा समाप्त हो चुका था। इसकी ऐसी हालत देखकर मुझे लगा कि न जाने कितने तालाब होंगे, जो ऐसे कचरों से भरे होंगे, जबकि हमारे यहां पूजा-पाठ से जुड़ी चीजों को बहते पानी में प्रवाहित करने की परंपरा है। तब मुझे एहसास हुआ कि इस पर कुछ करना चाहिए। फिर मैंने इस मुद्दे पर अनुसंधान करना आरंभ किया, तो कचरों के पुनर्चक्रण का ख्याल मेरे मन में आया, और यह कार्य करना आरंभ कर दिया।’ जबकि ये सब इतना सरल नहीं था, क्योंकि उसके पास इस कार्य करने के हेतु टीम नहीं थी। फिर उन्होंने जेल के कैदियों को टर्न ट्रेनिंग देना आरंभ किया और फिर उनको काम दिया। अब तक ये कैदियों को 60 प्रकार की मूर्तियों को तराशना सिखा चुके हैं।