BIHAR
बिहार: 14 साल की उम्र में बनाई ‘फोल्डिंग साइकिल,’ अपने इनोवेशन से दी पोलियो को मात
फिर भी हमारे देश में दिव्यांगों को बाहर निकलना हो तो बहुत-सी दिक्कतों से गुज़रना पड़ता है। आये दिन, इस बात पर चर्चा होती है कि कैसे हम देश को दिव्यांगो के नॉर्मल बना सकते हैं। एक तरफ जहाँ सब सुविधा के उपलब्ध के होते हुए भी बहुत से इंसान हाथ पर हाथ रखकर बैठ रहते हैं, तो वहीं हमारे देश में ऐसे कई एग्जांपल हैं, जो न मात्र अपने हेतु बल्कि दूसरों के हेतु भी प्रेरणा बनते हैं।
इसी प्रकार ही एक उदाहरण हैं 33 साल के संदीप कुमार। बिहार के पश्चिमी चंपारण के एक गाँव के निवासी है संदीप कुमार फ़िलहाल मुज़फ़्फ़रपुर में रहते हैं तथा भारतीय डाक सेवा में डाक सहायक के तौर पर कार्यकर्ता हैं।
जन्म के कुछ माह के पश्चात ही, संदीप पोलियो के चपेट में आ गाए , उसके चलते उनके हेतु सामान्य रूप से चलना-फिरना या फिर उठना-बैठना सरल नहीं रहा। उनके घर की भी आर्थिक-स्थिति बहुत बढ़िया नहीं थी, जिसके कारण से उन्हें सही उपचार भी नहीं मिल पाया।
पर फिर भी संदीप में जूनों की कोई कमी नहीं थी। बचपन से ही उनकी रूचि टेक्निकल, मैकेनिकल इत्यादि कार्यों में रही। गाँव में किसी भी घर में कई चीज़ खराब हो जाए, तो संदीप ही उसे अच्छे करते थे। इतना ही नहीं, गाँव में बिजली इत्यादि से संबंधित कार्य का भी वही करते थे।
उसके लिए, पूरा गाँव उन्हें ‘इंजीनियर’ बोलकर पुकारता था। परंतु उनके परिवार के पास इतने साधन उपलब्ध नहीं थे कि उस वक्त वे उनकी इंजीनियरिंग की शिक्षा का खर्च उठा सके। संदीप ने द बेटर इंडिया से बात करते हुए बताया को, “पोलियो के कारण से मैंने स्कूल भी काफ़ी बड़ी आयु में जाना आरंभ किया।”
पर अपने खुद के इनोवेशन करने का चाव संदीप को छह वर्ष की आयु से ही लग गया था।
“एक बार गाँव में किसी ने बोला कि अगर कुछ बना ही सकते हो, तो ऐसी दीवार घड़ी बना दो, उसमे घंटी बजे। कहने का मतलब यह है कि , अगर तीन बज रहे हैं, तो दीवार घड़ी में तीन बार घंटी बजे। जबकि, शायद यह कोई बड़ा इनोवेशन नहीं था, पर हमारे छोटे से गाँव के हेतु बहुत नई बात थी। मैंने इसे एक चुनौती के तरह से लिया और कुछ समय में यह घड़ी बना ली,” संदीप द्वारा बताया गया।
गाँव के ही स्कूल में आरंभिक शिक्षा समाप्त करने के बाद संदीप अपनी बड़ी बहन, सीमा के घर मुज़फ़्फ़रपुर चले गए। यहीं पर रहकर उन्होंने अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई समाप्त की। संदीप द्वारा बताया गया हैं की, “मेरे जीवन में मेरी बहन का अहम समर्पण रहा है। वे हर हालत पर मुझे हौसला देती। मैं जो भी करना चाहता था, उन्होंने मेरा हमेसा साथ दिया।”
परिवार का साथ होने के बाद भी, संदीप को घर के बाहर काफ़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। दिव्यांग होने के वसे , उन्हें कहीं भी सफर करने में काफ़ी दिक्कत रहती थी। वे आसानी से बस, ट्रेन इत्यादि में यात्रा नहीं कर पाते थे। पर उससे घबराकर उन्होंने हार नहीं मानी, जबकि इस पर कार्य करने का विचार किया।
उन्होंने ऐसी साइकिल निर्माण का फ़ैसला किया, जिसे आवस्कता हो तो वे चला सकें तथा जब ज़रूरत ना हो, तो उसे फोल्ड करके बैग में रख सके।
पर इस कार्य में सबसे बड़ी दिक्कत थी पैसे की। उनके पास ज़्यादा साधन नहीं थे, इसीलिए उन्होंने एक पुरानी सी साइकिल को ही मॉडिफाई करके बनाया ।
उस साइकिल के निर्माण में उन्हे करीब एक वर्ष लगा तथा उस वक्त करीब 2000 रूपये धनराशि की लागत आई। वह वर्ष 1998 था तथा मैं शायद नौवीं वर्ग में था। वर्ष 2006 में उन्होंने अपनी ग्रेजुएशन पूरी कर ली तथा इसी के समय उन्हे डाक डिपार्टमेंट में जॉब मिल गयी,” संदीप द्वारा बताया गया।
वैसे तो संदीप आगे टेक्नोलॉजी के फील्ड में कुछ करना चाहते थे, परंतु घर की फाइनेंशियल कंडीशन अच्छी न होने के वजह से उन्हें जॉब करनी पड़ी। जबकि , जॉब के सहित ही उनका इनोवेशन भी जारी रहा। उसके साथ ही, उन्होंने कई बार प्रशासन तथा ऑफिसरों का ध्यान अपने इस इनोवेशन की तरफ़ लाने का प्रयास की है। पर उन्हें कोई कामयाबी नहीं मिली, उसके बाद उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति को एक ईमेल लिखा। उनके ईमेल को नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन सेंड किया गया।
मार्च, 2000 में सस्थापना हुई थी, नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन का लक्ष्य ज़मीनी स्तर पर तकनीकी नवाचारों तथा उत्कृष्ट पारंपरिक शिक्षा को मजबूत कर, एक जागरूक तथा क्रिएटिव सोसाइटी को बनाना है। यह फाउंडेशन ऐसे लोगों को सम्मानित करते है, जो अपनी विचार और समझ से कुछ अलग आविष्कार कर, समाज तथा समुदाय में एक बदलाव लाने का प्रयास कर रहे हैं।
इस फाउंडेशन के ऑफिसरों ने संदीप की इस फोल्डिंग साइकिल को अच्छे प्रकार से जांच कर, उनका नाम वर्ष 2009 के नेशनल इनोवेशन अवॉर्ड के हेतु चुना।
संदीप ने अपनी साइकिल को नाम दिया, ‘संदसीमा,’ यह नाम उन्होंने अपने तथा अपनी बहन के नाम को मिला कर रखा।
यह 13 किलोग्राम की साइकिल है, जिसे फोल्ड करके 24 इंच के बैग में रख सकते है। कोई भी इसे 1 मिनट से भी कम वक्त में फोल्ड कर सकता है।
इस अवॉर्ड के बाद संदीप का जज्बा काफ़ी बढ़ा और उसके बाद, उन्हें ‘बिहार दिवस’ के समाहरो पर भी सम्मानित किया गया। परंतु आर्थिक दिक्कत और साधनों की कमी, वैसी ही बनी रही।
उन्होंने नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन के लोगो को बताया भी कि उनके पास बहुत से आईडिया हैं, जो सोसाइटी के काम आ सकते हैं। उनका हमेशा यही मानना रहा कि दूसरों के लिए कुछ किया जाए, उसी के लिए उन्होंने खुद से जितना हो पाता है, कुछ न कुछ करते रहते है ,” संदीप ने बताया।