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पढ़ाई के साथ खेती की, दूध बेचा, मशरूम उगाए और संभाला 9 लोगों के परिवार को

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मिलिए उत्तराखंड की सुपरवुमन बबीता रावत से, उन्होने 19 वर्ष की छोटी-सी आयु में अपनी पढ़ाई छोड़े बिना, एक एकड़ की भूमि पर खेती की, मशरूम उगाए, दूध बेचा तथा एक नर्सरी की आरंभ की। ‘आप उन लोगों को मशरूम कैसे बेचेंगी, जो उन्हें जहरीला मानते है?’ कुछ वर्ष पहले जो लोग उत्तराखंड की निवासी बबीता रावत से यह प्रश्न करते थे, आज वही उनसे मशरूम की खेती करना सीखने आते हैं।

बबीता उस वक्त सिर्फ 19 वर्ष की थीं, जब उन्होंने घर के नौ मेम्बर की देखभाल की सारी रेस्पोसबीलिटी अपने ऊपर लेने का निर्णय किया था। उन्होंने अपनी शिक्षा छोड़े बिना एक एकड़ भूमि पर खेती की, मशरूम उगाए , दूध बेचा और एक नर्सरी की आरंभ भी की। उनके दिन की शुरुआत खेत में जुताई के सहित होती थी, उसके बाद वह कॉलेज जाती थीं। कॉलेज तक जाने के लिए पांच किमी लंबे रास्ते को वह दूध बेचते हुए समाप्त करती थीं। घर लौटने के बाद, वर्कशॉप में हिस्सा लेना या खेतों में जाना, ये उनका हर रोज का कार्य था। शाम तथा रात का वक्त उन्होंने अपनी शिक्षा के लिए रखा हुआ था।

पिता की सहायता करने के लिए बबीता ने खेती करना आरंभ किया था। उन्होंने हमे बताते हुए कहा, “वे पढ़ाई नहीं छोड़ना चाहती थी। परंतु पिता की अचानक बिगड़ी स्वास्थ के कारण से, उन्हे दूसरी तरफ जाने के हेतु मजबूर होना पड़ा। वे दिल की बीमारी से ग्रसित है तथा खेतों में परिश्रम कर पाना उनके बस में नहीं था। उनका परिवार भारी कर्ज में न डूबे, इसी के हेतु मैंने सात नाली एक एकड़ जमीन पर गेहूं तथा दालों के अलावा, नई फसलें उगाने का निर्णय किया।”

बबीता को यह तो पता था कि खेती कैसे करते हैं, परंतु जमीनी स्तर पर अभी तक उन्होंने कुछ नहीं किया था। उसके लिए उन्होंने कृषि डिपार्टमेंट के द्वारा चलाए जाने वाले कार्यक्रमों में हिस्सा लेना आरंभ कर दिया तथा खुद से हल चलाना एवम बुवाई करना भी सीखा। उसके साथ-साथ डेयरी फार्मिंग का कार्य भी करने लगीं।

जब घर की आर्थिक स्थिति थोड़ी सही हुई तथा पैसे बचने लगे, तो उन्होंने अपनी भूमि पर कुछ और फसल उगाने का निर्णय किया। वह भूमि पर केवल खेती करने तक सीमित नहीं रहना चाहती थीं। उन्होंने बदलाव के हेतु मटर, भिंडी ,शिमला मिर्च, बैंगन, गोभी, प्याज, लहसुन, सरसों, पालक, मूली और बहुत सारी फसल उगाना आरंभ कर दिया।

नई-नई चीजों की तरफ जाना तथा मजबूती से उस पर टिके रहना बबीता की हिम्मत थी। उन्होंने खेती के साथ-साथ जब मशरूम की खेती पर हाथ आज़माने का सोचा, तो लोगों ने उन्होंने बताया, “आप उन लोगों को कैसे मशरूम बेचेंगी, जो इसे जहरीला मानते हैं?” परंतु यह प्रश्न भी बबीता को अपने मुकाम से दूर न ले जा सका। वह चुपचाप अपने कार्य में लगी रहीं। मशरूम की खेती से मिले लाभ और लोकप्रियता से उन्होंने न सिर्फ अपने गांव के पास मशरूम के बारे में फैले मिथकों को सम्पत किया, बल्कि 500 तथा महिलाओं को इसकी खेती करने के हेतु प्रेरणा भी दीया।

आज बबीता 25 वर्ष की हैं और इन 6 वर्ष में उन्होंने अपने आपको एक कामयाब किसान, उद्यमी तथा ट्रेनर बना लिया है। वह बताती हैं, “मैंने लोकल सरकारी मार्केट में जाकर लोगों से अपने प्रोडक्शन के बारे में बात की। पैकिंग अच्छी थी और कस्टमर से मिलकर उनकी दिक्कतों को दूर किया। उनका यह प्रयास सफल रहा और मार्केट में मेरे उगाए मशरूमों की मांग धीरे-धीरे बढ़ने लगी। मशरूम की पहली उपज से मुझे एक हजार रुपये का लाभ हुआ था।” ट्रेनिंग वर्कशॉप में जाने से बबिता को नई तरीके की इन्फोमेशन और जैविक खेती के बेनिफिट पता चले। उन्होंने अपने पिता और भाई-बहनों की सहायता से धीरे-धीरे जैविक खेती की तरफ जाना आरंग कर दिया।

बबीता ने बताया , “वे गोबर के गाय से वर्मिकम्पोस्ट बनाकर खेतों में उपयोग करने लगे। फसल को कीड़ों से बचाओ के लिए उस पर नीम के तेल एवम नीम पेस्ट का इस्तेमाल किया और गाय के गोबर एवम मूत्र से बने जीवामृत से पौधों की जड़ें मजबूत बनाई। यह एक साधारण सा बदलाव था, परंतु इससे उन्हे शानदार रिटर्न मिला और सबसे बड़ी बात उनके स्वास्थ में भी सुधार आया।”

बबिता का अगला कदम पॉलीहाउस खेती की तरफ था। उन्होंने इसका आरंभ टमाटर की फसल से किया। मात्र एक चक्र से उन्हें एक क्विंटल फसल मिली थी। वह बताई हैं कि यह पुराने प्रकार से खेती कर उगाए गए टमाटर की फसल से दुगनी थी। पॉलीहाउस पूरे वर्ष जरूरी पारा बनाए रखता है, उसी सालभर में एक चक्र से अधिक फसल उगाना संभव है। जबकि इन सबमें उनकी सबसे अधिक फायदेमंद खेती मशरूम की रही। उसमे अधिक निवेश की आवश्कता भी नहीं होती और रिटर्न भी बेहतरी मिलता है। भारतीय बाजार के सबसे पोष्टिक, गुणकारी और महंगे उत्पाद को उगाने के हेतु उन्होंने सोयाबीन और कृषि कचरे का उपयोग किया था। मात्र 500 रुपये के निवेश से उन्होंने मशरूम उगाना आरंभ किया था।

मशरूम की खेती से हुए लाभ और तरीके के बारे में वह बताती हैं, “उन्होंने पुआल को पहले कुछ घंटे भिगोकर रखती है, ताकि वे नरम हो जाएं तथा उसमें उपस्थित गंदगी निकल जाए। स्टरलाइज करने तथा सुखाने के बाद, इसे पॉली बैग में भर देते हैं। दो से तीन हफ्ते के बाद मशरूम अंकुरित होने आरंभ हो जाते है। मात्र मशरूम की फसल से हर चक्र में उन्हे 20,000 रुपये धनराशि की कमाई हो जाती है।” बबीता ने अपने घर के एक छोटे से कमरे में मशरूम उगाने से शुरुआत की थी। जब उनका ये प्रयास सफल रहा, तो उन्होंने उसके फसल के हेतु अपने पुराने छोड़े हुए। मकान की तरफ रुख किया। आज वह, वहां न मात्र मशरूम उगाती हैं, बल्कि मशरूम फार्मिंग की वर्कशॉप चलाती हैं तथा महिलाओं को उसके हेतु प्रशिक्षण भी देती हैं।

गांव की एक किसान रजनी ने पिछले वर्ष बबीता से ट्रेनिग लिया था तथा अपने पहले ही चक्र में उन्होंने 12 किलो मशरूम उगाने में कामयाबी प्राप्त की थी। एक किलो मशरूम के उन्हें 300 रुपये प्राप्त होते हैं। उन्होंने बताया, “फल और सब्जियों की तुलना में मशरूम उगाना सरल है। शुरू करने के हेतु अधिक पैसों की भी आवस्कत्ता नहीं है। बबीता ने मुझे बीज और पॉली बैग दिलाने में सहायता की और मुझे अपनी फसल बेचने के हेतु बाजार के लिंक भी दिए।”

बबीता की प्रशिक्षण अब लोगों के मध्य चर्चा का विषय बन गई है। पड़ोसी जिला चकौली के लोग भी उनकी खेती के बारे में जानने और प्रशिक्षण के हेतु उनके पास आने लगे हैं। इस मध्य जब किसानों, खासकर महिलाओं से जैविक बीजों तथा पौधों की मांग बढ़ने लगी, तो उन्होंने एक नर्सरी भी शुरुवात कर दी। जैविक खेती के तरीके और कोशिश के लिए राज्य सरकार ने उन्हें पिछले वर्ष प्रतिष्ठित ‘तिलू रौतेली पुरस्कार’ से सम्मानित भी किया था।

पिछले कुछ वर्षो में, बबीता अपने गांव के किसानों को जैविक खाद का उपयोग करते हुए खेत में एक फसल से बहु-फसल की ओर ले आई हैं। ऐसे ही वेक्तिय में रजनी का नाम भी सम्मिलित है और वे इस बदलाव से बहुत ही खुश हैं। क्योंकि इससे उनका पैसा और वक्त दोनों बचता है। अब उन्हें बाहर से खाद खरीदने के हेतु पैसे खर्च नहीं करने पड़ते।