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पटना IIT के कमाल से देश को होगा लाभ, अब कम समय व मूल्य में निकलेगा अधिक ग्राफिन

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शोध का फ़ायदा तभी है, जब इससे ज्यादातर इस्तेमाल की अनुमान हो एवं वह भी मिनिमम व्यय में। पटना स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT) ने ऐसा कर दिखाया है। इस इंस्टीट्यूट के प्लाज्मा स्प्रे कोटिंग लैब में ग्रेफाइट से ग्राफिन को निकालने की नई टेक्निक डेवलप की गई है। इस टेक्निक से तुलनात्मक ज्यादा मात्रा में एवं कम शुल्क पर अच्छे क्वालिटी वाले ग्राफिन का प्रोडक्शन संभव होगा। उसका फायदा यह है कि अब भी बेहद हद तक विस्तूत पर निर्भर हिंदुस्तान अपनी जरूरत के अनुपात में ग्राफिन का प्रोडक्शन कर सकेगा।

ग्रेफाइट या अन्य कार्बनिक चीजों से मूल्यवान ग्राफिन प्राप्त होता है। इंडिया में केरल एवं झारखंड के जमशेदपुर में अब भी ग्राफिन का प्रोडक्शन हो रहा है। फिर भी इंग्लैंड के मैनचेस्टर सहित किन्ही देशों से उसका आयात हो रहा है। IIT को इसे निकालने में सिर्फ 88 रुपये पर ग्राम का लागत का खर्च आया है, हालाकि मार्केट में इसका दाम पांच से सात गुना ज्यादा है। अगर आगे प्रोविजनल लेवल पर प्रोडक्शन शुरू होता है तो जाहिर है कि ग्राफिन के आयात पर व्यय होने वाले फॉरेन करेंसी की बचत होगी।

मेटालर्जिकल व मैटेरियल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के प्रो. अनुप केसरी के नेतृत्व में मो. अमीनुल इस्लाम, विश्वज्योति मुखर्जी एवं कृष्णकांत पांडेय द्वारा यह अनुसंधान किया है। प्रो. अनुप द्वारा बताया गया कि यह ग्राफिन हर प्रकार से केमिकल व डिटॉक्स होगा। इंटरनेशनल जर्नल में इस अनुसंधान का पब्लिश भी किया जा चुका है।

वेट में बेहद हल्का ग्राफिन कार्बन का ही एक कॉम्पिनेंट है एवं दुनिया का सबसे मजबूत पदार्थ है। यह 2-डी मैटेरियल है मतलब उसकी कोई मोटाई नहीं। इसकी एक वर्ग मीटर परत का वेट बमुश्किल 0.77 ग्राम होता है। मेटल, पालीमर, सीरामिक, ट्रांपैरेंट कंडक्टिव फिल्म के सहित एनर्जी , आटोमोबाइल एवं इलेक्ट्रानिक्स इत्यादि जगहों में उसका इस्तेमाल होता है। बुलेट व वाटर प्रूफ, जंगरोधी और जल-शोधन क्वालिटी के वजह से इसकी काफी मांग है। स्पेस कार्फ्ट व एयर क्राफ्ट इत्यादि के निर्माण में भी उसका इस्तेमाल होता है। उसे बने प्रोडक्ट मजबूत होने के सहित ज्यादा बैकअप वाले होते हैं।

अब तक केमिकल वेपर डिपोजिशन ( CVD ) व इलेक्ट्रो केमिकल एक्सफालिएशन ECI टेक्निक से ग्राफिन को निकाला जाता था। जबकि, इसकी क्वांटिटी मिलीग्राम में होती थी, हालाकि IIT की नई टेक्निक (प्लाज्मा स्प्रे) से अब अधिक ग्राफिन हासिल होगा। अब उसका प्रोडक्शन ग्राम में पॉसिबल हो गया है। साफ है कि अब ज्यादा क्वांटिटी में ग्राफिन की परतें बनाई जा सकेंगी।

IIT पटना के डायरेक्टर प्रो. टीएन सिंह द्वारा बताया गया कि पहले बाल मिलिंग मैटर से ग्राफिन को निकाला जाता था। यह एक मैकेनिकल एक्सफालिएशन प्रोसेस है। उसमे वक्त ज्यादा लगता है। IIT , पटना में प्लाज्मा स्प्रे मैटर से ग्राम में ग्राफिन सरलता से निकलता है। उसके खर्च भी बेहद कम है। यह देश भर में शोध व व्यवसाय इस्तेमाल के हेतु फ्यादामंद होगा।

ग्राफिन बिजली का सबसे बेहतर परिचालक है। दूर तक बिजली पहुचाने में किया जा सकता है।
-कार, एयरोप्लेन, पानी के जहाज को और मजबूत बनाने में उपयोग।
-पारदर्शी होने के वजह से इसका उपयोग बुलेट प्रूफ कांच, जैकेट में किया जा सकता है।
-पानी को औरों से ज्यादा साफ कर सकता है, उसके किसी तत्व को बिना हानि पहुचाये।
-बहुत हल्का होने के वजह से इसका उपयोग स्पेस क्राफ्ट बनाने में कर सकते हैैं।