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BIHAR

पटना के आनंद बिना किसी फंडिंग के करते है गरीबों की सहायता, बोले- जरूरतमंदों की मदद करना ही मेरा शौक है

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हम सभी को खिला नहीं सकते परंतु हर इंसान किसी को खिला सकता है’। इसी विचार के साथ पटना के 33 वर्ष के आनंद त्रिवेदी अनाथ और गरीबों की सहायता के हेतु अपनी पूरी जिंदगी लगाने को तैयार हैं। रॉ मटेरियल का व्यापार करने वाले आनंद ने अपने कमाई का अधिक भाग लोगों की सहायता करने में निछावर कर देते हैं। बिहार में आने वाली कई दिक्कतों में भी वह लोगों की सहायता के हेतु बढ़चढ़ कर शामिल होते हैं। चाहे चमकी बुखार हो बाढ़ की दिक्कत हो या कोरोना काल में रोड पर भूखे सोने निसहाय लोगों की सहायता करना।

आनंद कोरोना में जरूरतमंद व्यक्तियो को अपने मध्यम से राशन के सहित दवाई तक की प्रबंध कराई। बिना किसी सरकारी या अन्य फंडिंग के हेतु 2014 से लगातार आवस्कतापूर्ण लोगों की सहायता कर रहें हैं। उसके सहित ही गरीब बच्चों को वे सोयम पढ़ाते भी हैं। उनके द्वारा बताया गया कि जरूरतमंदों की सहायता करना उनका शौक है। आनंद ने बताया कि उन्होंने सोशल वर्क का आरंभ 2014 में किया था। कहा- एक वक्त वे बाहर खाने निकले। उसी दौरान एक मानसिक विक्षिप्त घूमते इंसान को देखा। उसी वक्त से उन्हें जरूरतमंदों की सहायता करने की ठानी। इसी समय उत्तर बिहार में 2019 में चमकी बुखार का प्रभाव था। तब उन्होंने मुजफ्फरपुर जाकर दलित बस्ती में निवास करके देखा कि लोग बुखार से नहीं बल्कि भूखे मर रहे थे। ऐसे में वहां कैंप लगाकर सहायता की।

इसके बाद पटना में बाढ़ आया तो उसमें समय भी 20 से 25 दिन राजेंद्र नगर में रहकर उन्होंने अपने घर से खिचड़ी बनवा कर जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाया। ऐसे ही करते-करते 2020 में कोरोना में व्यापार ठप हो जाने के कारण से जब पैसा नहीं बचा तो पिता से मांगा। काम से खुश होकर पिता ने कोरोना के समय जरूरतमंद लोगों की सहायता के हेतु पैसे दिए। उस समय भी लोगों के मदद के लिए मेडिकल सुविधा की व्यवस्था करवाई और लोगों को ब्लड डोनेट करने के हेतु भी जागरूक किया।

लोगों जरिए हमेशा किया गया क्रिटिसाइज, पागल भी कहा , उनके द्वारा गया बताया कि इस काम करने के वक्त लोगों ने उनकी आलोचना भी किया गया। जबकि कि उन्हें पागल भी लोग कहते थे। लोगों का कहना था कि- तुम्हारी उम्र मौज मस्ती की है। तू क्या इन सब को छोड़कर लोगों के पीछे भागता है? इतना ही नहीं परिवार वालों से भी हमेशा ताना सुनने को मिला कि जितना कमाता नहीं उससे अधिक लोगों में लगा देता है। इस सब के बावजूद वो लोगों की सहायता करते हैं।

इनके कार्य को ध्यान देते हुए भिन्न भिन्न पॉलिटिकल पार्टी में अलग-अलग पद का हमेशा ही इन्हें प्रस्ताव मिलता रहा है। इसके सहित ही अलग अलग एनजीओ से भी ज्वाइन होने का भी प्रस्ताव मिला। परंतु ये हमेशा अकेले खुद ही कार्य किए इनका बोलना है की बिना पद या बिना किसी संस्थान से जुड़े हुए भी कार्य किया जा सकता है। पद की चाह रखना मूर्खतापूर्ण है। हमें अपने मध्यम से जितना हो सके उतना आवस्कतापूर्ण लोगों की सहायता करनी चाहिए।

आनंद त्रिवेदी का कहना है कि अगर हम अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकल कर ध्यान देंगे तो हमें पता चलेगा कि हमारे आस पास कितने निसहाय जरूरतमंद लोग हैं। हमें उन लोगों की सहायता नहीं करनी है जिनको भगवान ने शारीरिक रूप से स्वस्थ बनाया है। हमें सिर्फ उनकी सहायता करनी है जो शारीरिक या मानसिक रूप से स्वास्थ नही है। उनका हाथ-पैर नहीं चल सकता क्योंकि असल में ऐसे ही लोग निसहाय होते हैं। इसके सहित ही ऐसे लोगों को पैसे देने की बजाय उन्हें कुछ खाने या पहनने को दे दिया करें। उसके बाद उन लोगों के चेहरे पर जो मुस्कुराहट आएगी वह देख कर दिल को काफी सुकून मिलेगा और चैन की नींद भी आएगी।