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पटना: कभी भीख मांगती थी अब चला रही कैफेटेरिया, लड़कियों की रोल मॉडल बन गई ज्योति

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आपने आप को कर बुलंद इतना कि हर किस्मत से पहले खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है।’ मशहूर शायर अल्लामा इकबाल की यह पंक्ति पटना की ज्योति पर हर प्रकार से सही साबित होती है। हालाकि, कैफेटेरिया चलाने वाली ज्योति को लेकर कोई यह नहीं बोल सकता कि पहले वह पटना जंक्शन पर भीख मांगती होंगी। कचरा इक्कठा का काम करती थी। बात करने का उसका तौर-तरीका, बॉडी लैंग्वेज और इंग्लिश भी जानती है उसे अतीत से विलुप्त कर कहीं और ले जाती है। ज्योति के यह कचरा से कैफेटेरिया तक का सफर बहुत मुस्किल भरा था। फिर भी वह अपनी लगन और परिश्रम से अलग मुकाम तक पहुंची।

अपनी इस स्थिति को लेकर परेशान रहने वालों के हेतु ज्योति मिसाल है। बहुत सी लड़कियों को उनसे प्रेरणा मिलती है। आपको बता रहे है कि कैसे 19 वर्ष की ज्योति पटना जंक्शन की भिखारी मंडली से हटकर कैफेटेरिया के मुकाम तक पहुंची है। उनके द्वारा बताया गया, सिर्फ एक वर्ष की आयु में ही उसे पटना जंक्शन पर छोड़ दिया गया था। यही कारण है कि उसे अब भी ये पता नहीं है कि उसके माता-पिता कौन हैं।’

बचपन में ही एक दातुन बेचने वाले ने ज्योति को अपने साथ रख लिया था। इसके साथ ही वो पटना जंक्शन पर भीकर्री बनी और कचरा भी उठाया, परंतु तकदीर ऐसी रही की है कि जिस मां ने उसे पाला पोसा उसकी मृत्यु हो गई। अब ज्योति के लिए आगे की सफर और भी दिक्कत भरी हो गई। मां की देहांत के बाद ज्योति को जिला प्रशासन ने रैंबो राजवंशी नगर में रख दिया गया। उस समय उसकी आयु सिर्फ 10 वर्ष ही थी। यहीं से ज्योति ने परिश्रम करना आरंभ किया और अपने भविष्य को बदलने की प्रयास की।

रैंबो से ही उसने शिक्षा पर अच्छे से ध्यान दिया। ज्योति को लगा कि ये वह सफर है, जो उसे आगे ले जा सकती है। कड़ी परिश्रम के बदौलत मैट्रिक की एग्जाम दी और अच्छे आंक से पास हुई। इसके बाद पढ़ाई के साथ-साथ कला में भी उसकी इच्छा है। एक बेहतर कलाकार भी है। ज्योति की परिश्रम देखकर एक कंपनी ने कैफेटेरिया चलाने का कार्य दे दिया। उन्होंने बताया कि वह दिनभर कैफे चलाती है और रात को पढ़ती है। अब ज्योति अपने पैरों पर खड़ी हैं और अपना खर्च खुद उठाती है।