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धीरेश ने किसानों के लिए बनाया ऐप, खेती की जानकारी से लेकर मार्केटिंग तक की सुविधा

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खेती करनी है, परंतु समझ नहीं आ रहा कि मेरी जमीन एवं मिट्टी के हिसाब से कौन सी फसल अच्छी होगी? उसके लिए कौन-कौन सी चीजों की आवश्कता होगी? बेहतर प्रोडक्शन के हेतु क्या करना चाहिए? फसल में बीमारी लग जाए तो उसका बचाव कैसे करें? फसल कटने के बाद अपना प्रोडक्ट कहां बेचें? खेती को लेकर सरकार की कौन-कौन सी प्लान हैं, उनका फायदा कैसे लिया जा सकता है? ये कुछ ऐसे परेशान हैं जो अमूमन हर किसान के मन में होते हैं। किसानों की इस दिक्कतों का हल निकाला है दिल्ली के रहने वाले धीरेश एवं उनके दो साथियों द्वारा। तीनों ने एक ऐसा मोबाइल ऐप लॉन्च किया है, उसके मध्यम से किसान खेती से जुड़े हर प्रश्न का जवाब जान सकते हैं। कोई भी इक्विपमेंट खरीद सकते हैं। उसके सहित ही अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग भी इस ऐप के मध्यम से कर सकते हैं। अभी तो धीरेश के साथ 500 से अधिक किसान जुड़े हैं एवं 25 लाख उनका टर्नओवर है।

धीरेश, निशांत एवम पारस तीनों बचपन के मित्र हैं। धीरेश एवं पारस ने इंजीनियरिंग की है, हालाकि निशांत ने B.Sc. एग्रीकल्चर की पढ़ाई की है। अपने विचार को लेकर धीरेश कहते हैं कि तीन-चार पहले निशांत को एग्रीकल्चर से जुड़ा एक प्रोजेक्ट मिला था। उन्हें पंजाब एवं राजस्थान के किन्ही जिलों में किसानों के मध्य जाना था। हम भी घूमने के मूड से उनके सहित ही चले गए। हम लोग किसानों के मध्य जाने लगे एवं उनकी परेशानी समझने लगे। कुछ ही दिनों बाद हमें एहसास हुआ कि देश के अधिकतर किसानों को प्रोग्रेसिव फार्मिंग के बारे कोई इनफॉर्मेशन नहीं है। वे पहले से बनाए गए एक ट्रैडीशनल सेट पैटर्न पर खेती करते आ रहे हैं। इसी कारण से न तो उनकी उपज बेहतर होती है और न ही अच्छी कमाई हो पाती है।

धीरेश बताते हैं कि बेशक यह प्रोजेक्ट निशांत का था, परंतु हमें यह एहसास हो गया कि अगर किसानों के हेतु कोई एडवांस सॉल्यूशन निकाल लिया जाए तो करियर के लिहाज से भी अच्छा अवसर हो सकता है। फिर क्या था, तीनों लोग भिन्न भिन्न राज्यों में गए, कई किसानों से मिले एवं सबकी परेशानी को इकट्ठा किया। उसके बाद उनका सॉल्यूशन निकालने को लेकर कार्य करने लगे।

धीरेश बताते हैं कि किसानों से मिलने के बाद सबसे बड़ी जो परेशानी जो सामने आई वो यह कि वे अपनी भूमि की क्वालिटी टेस्ट नहीं कर पाते थे। हालाकि अगर उनकी फसल को कोई बीमारी लग जाए तो उसकी पहचान करना उनके लिए बेहद मुश्किल भरा होता था। इसी कारण से उन्हें बहुत नुकसान होता था। उसको लेकर हमने AI बेस्ड एक ऐप बनाया है। उसमे लगभग 2-3 लाख रुपए धनराशि की लागत आई। इस ऐप पर मिट्टी की फोटो अपलोड करते ही वो उसकी क्वालिटी का पता चल जाता था। इसी प्रकार से अगर पौधों में कोई बीमारी लगी है तो उसकी फोटो ऐप पर अपलोड करने पर बीमारी का पता लग जाता था।

वे बताते हैं कि इस ऐप को लेकर जब हम किसानों के मध्य गए तो उन्हें कन्विंस करना बेहद टफ टास्क था। उन्हें न तो हमारी बातों पर यकीन था और न ही इस मॉडर्न टेक्नोलॉजी पर, परंतु निरंतर उनके मध्य रहने के बाद हम उनका यकीन जीतने में कामयाब रहे। उसके बाद हमने किसानों की दूसरी दिक्कतों पर फोकस करना आरंभ कर दिया।

धीरेश बताते हैं कि किसानों के मध्य कार्य करने के दौरान हमें पता चला कि अधिकतर किसानों को ठीक बीज और खेती से जुड़े सामान नहीं प्राप्त हो पाते हैं। अगर मिलते भी हैं तो उसके हेतु उन्हें ज्यादा कीमत देनी पड़ती है। इस दिक्कत को दूर करने के हेतु हमने किसान सुविधा केंद्र की शुरुआत की। मतलब एक ऐसा स्थान जहां खेती से जुड़े सामान प्राप्त हो सके। उसके हेतु हमने अलग से कोई दुकान शुरू करने के बजाय उस लोकेशन पर उपलब्ध राशन दुकानों पर ही अपना सामान रखा एवम वहां बैनर-पोस्टर लगा दिए।

जैसे-जैसे किसानों को सुविधा केंद्र के बारे में पता चला और वे वहां जाने लगे एवं सामान खरीदने लगे। इस प्रकार से उनका कार्य आगे बढ़ने लगा एवं एक के बाद एक किसान उनसे जुड़ने लगे। उसके सहित ही तीनों का कार्य भी बढ़ता गया। वे कहते हैं कि जब किसानों की उत्पादन बेहतर होने लगी तो उन्हें मार्केटिंग में परेशानी होने लगी। उन्हें न तो अच्छा मार्केट मिलता था एवं न ही सही कीमत मिल पति थी। हमने इस समस्या का भी हल निकाला एवं ऐप के मध्यम से खरीद-बिक्री की सुविधा आरंभ कर दी। अब किसान आपस में बात करके अपने प्रोडक्ट एक दूसरे को खरीद-बेच सकते हैं। हमारा रोल उन्हें उन्हें केवल एक प्लेटफॉर्म प्रोवाइड कराने तक ही होता है। बाकी की सारी चीजें किसान स्वयं ही डील करते हैं।

भास्कर से बात करते हुए धीरेश बताते हैं कि कोरोना में ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के ट्रेंड हर सेक्टर बढ़तोरी हुई । फार्मिंग सेक्टर में भी इसने बेहद अच्छी खासी ग्रोथ प्राप्त की। इसका लाभ हमें भी मिला। किसानों को घर बैठे, बिना कहीं भाग-दौड़ के उनकी आवस्कताए पूरी होने लगीं। उनकी दिक्कतों का निपटारा होने लगा। इस समय हमारे किसान सुविधा केंद्र में भी बढ़ोतरी हुई। साथ ही बीज एवं खेती से जुड़े दिक्कतों की अच्छी सेल भी हुई। उतना ही नहीं कई बड़ी कंपनियां भी हमारे साथ जुड़ गईं।

इस प्लेटफॉर्म से जुड़ने के हेतु स्मार्टफोन एवं इंटरनेट कनेक्टिविटी आवस्कता है। गूगल प्ले स्टोर से Neem Tree ऐप को डाउनलोड कर सकते है। उसके बाद किसान अपनी बेसिक डिटेल मसलन नाम, उम्र, पता, मोबाइल नंबर प्रोवाइड करके उससे जुड़ सकते है। अगर किसी किसान को जुड़ने में समस्या होती है तो धीरेश की टीम उसमें सहायता भी करती हैं। उसके हेतु किसान को किसी प्रकार की कीमत नहीं चुकानी पड़ती। वे ऐप पर उपलब्ध सभी सुविधाओं का फायदा उठा सकते हैं।

धीरेश कहते हैं कि हमारा ऐप किसानों या किसी भी यूजर के हेतु पूरी तरह मुफ्त है। किसान यहां अपनी आवासक्ता की हर जानकारी फ्री में प्राप्त कर सकते हैं एवं अपनी दिक्कतों का निदान पा सकते हैं। जहां तक कमाई की बात है तो हम दो प्रकार से रेवेन्यू जनरेट करते हैं। पहला अपना प्रोडक्ट बेचकर एवं दूसरा खेती से जुड़ी कंपनियों के विज्ञापन को अपने ऐप पर दिखाकर। पिछले वर्ष हमारा टर्नओवर लगभग 25 लाख रुपए रहा था। उसके अलावा कई इलाको से फंड भी मिला हुआ है।

अगर इस प्रकार के स्टार्टअप में आपकी दिलचस्पी है तो यह खबर आपके काम की है UP के मेरठ जिले के निवासी हर्षित गुप्ता ने अपने मित्रों के साथ मिलकर एक ऐसा ऐप बनाया है, उसके मध्यम से किसान एक्सपर्ट के जरिए से अपनी दिक्कतों का हल पा सकते हैं। खेती से जुड़े हर प्रश्न का जवाब प्राप्त कर सकते हैं। उतना ही नहीं, किसान इस ऐप की सहायता से अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग भी कर सकते हैं। हालाकि हर्षित के साथ देशभर के 8 लाख से अधिक किसान जुड़े हैं। इसको लेकर उन्हें फोर्ब्स 30 की लिस्ट में भी जगह प्राप्त हो चुकी है।