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जानिए उस महिला के बारे मे जो विकलांग होने के बावजूद अचार और पापड़ बेच कर कमाती हैं लाखों की महीन

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गुजरात राज्य के मेहसाणा की रहने वाली चेतनाबेन पटेल चार वर्ष की उम्र से ही पोलियो की शिकार हो गईं जिसकी वजह से उन्हें चलने में काफी दिक्कत होती थी। वहीं उनकी उम्र के सभी बच्चे चलकर स्कूल जाते थे, तब चेतना हाथ और पैर दोनों के सहारे एक किलोमीटर का सफर मुश्किल से तय कर पढ़ने जाया करती थीं। उन्हें समझ में आ गया था कि उनका जीवन अन्य लोगों की तरह उतना आसान नहीं होगा और आगे उनके लिए बहुत सारी मुश्किलें खड़ीं हैं। लेकिन उन्होंने भी अपनी इस विकलांगता को अपनी कमजोरी नहीं बनने दी। उन्हें विश्वास था कि अच्छी शिक्षा को प्राप्त कर वे अपना भविष्य जरूर बेहतर कर लेंगी।  

आठवीं कक्षा तक इसी तरह पढ़ाई करने के बाद उन्हें तीन पहिये वाली साइकिल मिली जिससे उसे स्कूल जाना थोड़ा आसान हो गया। उन्होंने उसी साइकिल की मदद से एमए तक की पढ़ाई पूरी की। उनका मानना था कि वे अपनी पढ़ाई करने के बाद नौकरी मिलना आसान होगा लेकिन दिव्यांग होने के कारण उन्हें कोई भी नौकरी देने को तैयार नहीं होता था। 

इसके बाद उन्होंने एक एनजीओ से कंप्यूटर का कोर्स पूरा किया और साल 2009 में उसी संस्था में उन्हें कंप्यूटर ऑपरेटर की नौकरी भी प्राप्त हो गई जिसके बाद चेतनाबेन को लगा कि उनके जीवन की चुनौतियां ख़त्म हो गई हैं। उन्होंने उस नौकरी से कुछ पैसे कमाए और उस कमाए हुए पैसों से अपने लिए एक स्कूटी भी खरीदी।  

लेकिन कुछ निजी कारणों के कारण साल 2017 में उन्हें मेहसाणा से अपने गांव तरंगा आना पड़ा और विलंब होने की वजह से उन्हें बहुत मुश्किल से जो नौकरी प्राप्त हुई थी वह भी छूट गई। जिसके बाद उन्होंने काफी कोशिश की लेकिन उन कोशिशों के बाद भी उन्हें कोई भी काम नहीं मिला। उसके बाद उन्होंने अपनी भाभी की मदद से अचार का बिज़नेस शुरू करने का फैसला किया।

कोरोना संक्रमण से मरीजों की बढ़ती हुई संख्या में लगातार बढ़ौती होने की वजह से पूरे देश में लॉकडाउन लगाया गया था। चेतना ने उस लॉकडाउन के समय करीब दो किलो आम का अचार बनाकर आस-पास के गांव में फ्री में हीं बांट दिया। लोगों को उनके अचार पसंद आए और उनकी तारीफ भी जिसके बाद उन्हें लगा कि शायद उनका यह बिजनेस सफल हो जाएगा। लोगों के द्वारा उसपर सकारात्मक परिणाम मिले। उसके बाद कुछ लोगों ने उन्हें फोन पर ही ऑर्डर दिए और इस तरह उनका बिजनेस चल पड़ा।

धीरे-धीरे वह फ़ोन पर ऑर्डर लेकर स्कूटी पर डिलीवरी करने जाने लगीं। अचार का बिजनेस सफल होने के बाद चेतना ने पापड़ का भी व्यापार करने का सोचा। आज चेतनाबेन आचार के साथ-साथ पापड़ के भी ऑर्डर्स लेती हैं। उन्हें फ़ोन पर आसपास के शहरों से भी ऑर्डर मिलते हैं, जिन्हें वह कूरियर की मदद से भिजवाती हैं।  

भले ही 43 वर्षीया चेतनाबेन 80 प्रतिशत दिव्यांग हैं, लेकिन उनके हौसले की वजह से चेतना यहां तक आ पाई है। उनके इस कठिनाइयों भरी जिंदगी से अन्य लोगों को भी सीख लेनी चाहिए। अगर किसी व्यक्ति में कोई कमी है तो उस कमी को पीछे छोड़कर आगे बढ़ जाना चाहिए।