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BIHAR

कुष्ठ रोगों को ठीक कर उन्हे स्वस्थ करने के चर्चित है बिहार के रक्सौल में स्थित यह अस्पताल

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नेपाल बॉर्डर से सटे बिहार का पूर्वी चंपारण के रक्सौल में स्थित एक अस्पताल कुष्ठ रोग को ठीक करने के लिए काफी चर्चित है जहां कुष्ठ रोगियों का उपचार कर उनके रोगों को ठीक किया जाता है। उन रोगियों के लिए वहां एक बस्ती बसा दी गई है। उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़े रखा और खोया आत्मविश्वास लौटा दिया। बेहतर तरीके से उपचार, निशुल्क नियमित दवाएं और बेहतर ढंग से देखभाल से मरीजों को ठीक करके उनकी संख्या में गिरावट की जा रही है। विगत पांच साल में इसमें काफी गिरावट देखने को भी मिला है।

लगभग 40 साल पहले रक्सौल के सुंदरपुर में स्थापित लिटिल फ्लावर लेप्रोसी सेंटर आज भी उसी जज्बे के साथ कुष्ठ रोगियों के इलाज का कार्य कर रही है। जिनका यहां से इलाज चल रहा, उन्हें सेंटर के माध्यम से रोजी-रोजगार से भी जोड़ा जा रहा है। खेती-किसानी, दुग्ध उत्पादन, मुर्गी पालन आदि के माध्यम से रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है। साथ ही बच्चों को स्कूल से जोड़ा जा रहा है। जनवरी के अंतिम रविवार को हर साल विश्व कुष्ठ दिवस मनाया जाता है। राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी को श्रद्धांजलि देने के लिए फ्रांसीसी मानवतावादी राउल फोलेरो ने यह दिन चुना था, जिनमें कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों के लिए दया की भावना थी।

डा. गिरीश चंद्र श्रीवास्तव बताते हैं कि बिहार, उत्तर प्रदेश और नेपाल के विभिन्न हिस्सों से कुष्ठ रोगी यहां अपना इलाज कराने आते हैं। साल 2017 में करीब 1103 मरीज यहां अपना इलाज कराने आए थे। वहीं 2018 में 1073 मरीज यहां आए और 2019 में मरीजों की संख्या में वृद्धि होकर 1134 हो गई। इसके अगले साल 2020 में मरीजों की संख्या में काफी अधिक गिरावट हुई और केवल 176 मरीज ही यहां आए। 2021 से लेकर अब तक 222 मरीजों का इलाज चल रहा है।

बताया जा रहा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन के अनुसार ही रोगियों का उपचार किया जाता है। उपचार और दवा के साथ ड्रेसिंग व सफाई का ध्यान भी रखा जाता है। अस्पताल की ओर से मरीजों के लिए बस्तियां भी बसा दी गई हैं। इनमें सीतामढ़ी में दो, बेतिया में सात, मुजफ्फरपुर में एक और मोतिहारी में 12 बस्ती बसाई गई हैं। अस्पताल के कर्मी समय-समय पर इन बस्तियों में जाकर पीडि़तों की जांच करते हैं।

इस अस्पताल की स्थापना सन् 1982 में की गई थी। इसकी स्थापना से पहले सरिसवा नदी के तट पर एक सेवा आश्रम था। कोलकाता में मदर टेरेसा के सहयोगी रहे केरल निवासी बाबा आरक्रिस्टो दास यहां कुष्ठ रोगियों का उपचार और देखभाल किया करते थे। उनके यहां आने से बिहार के अलावा नेपाल व उत्तर प्रदेश से भी पीडि़त पहुंचने लगे। 1982 में लिटिल फ्लावर लेप्रोसी वेलफेयर एसोसिएशन के माध्यम से 200 बेड के साथ इस अस्पताल की स्थापना की गई। वर्ष 2011 में आरक्रिस्टो दास ने निधन से पहले नेपाल की समाजसेविका कविता भट्टराई ‘माताजी’ को संस्था की जिम्मेदारी सौंप दी। फिलहाल माताजी की देखरेख में अस्पताल का संचालन किया जा रहा है। डा. गिरीश चंद्र कहते हैं कि 10 हजार की आबादी में केवल अब एक से दो पीडि़त हैं, इसलिए अब इसे नियंत्रित माना जा सकता है। इसे भी ठीक कर दिया जाएगा।