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अपने बचपन के शौक को किया पूरा, पांच हजार रुपए से शुरू की कंपनी, आज है 15 करोड़ का टर्नओवर

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आज के वर्तमान समय में बहुत से युवा अपने सपने को पूरा करने के लिए मेहनत कर रहे हैं। कोई शिक्षा के क्षेत्र में तो कोई व्यापार के क्षेत्र में। ऐसी ही कहानी हैं पूजा चौधरी की जो नाइका, पिंटरेस्ट जैसे ब्रांड्स तक अपनी पहुंच बना चुकीं हैं। पूजा राजस्थान के भीलवाड़ा की रहने वाली हैं। उन्होंने बताया कि वे दूसरी कक्षा तक की पढ़ाई भीलवाड़ा से की और उसके बाद उन्हें पिलानी में बोर्डिंग स्कूल में डाल दिया गया। वहीं रहकर उन्होंने कॉलेज तक की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद लक्ष्मणगढ़ से बीबीए किया। बीबीए के बाद वे जापान चली गई और वहां से फाइनेंस में एमबीए किया।

पूजा ने एमबीए करने के बाद मार्केटिंग का काम भी किया और फिर पापा के बिजनेस में हाथ बंटाया। पापा चाहते थे कि मैं सिविल सर्विसेज की तैयारी करूं और फिर मुझे यूपीएससी की तैयारी के लिए जयपुर भेज दिया गया। यहां आने के बाद समझ आया कि यूपीएससी मेरे लिए नहीं है। मैंने सर्च किया कि जयपुर में सबसे ज्यादा क्या अच्छा बनाते हैं, तब मालूम हुआ कि यहां वुमन क्लोदिंग की छपाई का काम बहुत फेमस है। इसी को देखकर मैंने फैब्रिक के बारे में समझ बनाना शुरू किया। मैंने खुद ही डिजाइन करके लोकल टेलर से कपड़े सिलवाए और शूट कराने लगी। मुझे बचपन से फैशन ट्रेंड्स को फॉलो करना, नए कपड़े पहनना और अच्छे से ड्रेसअप होना पसंद था। जयपुर जाने के बाद मुझे लगा कि अगर जीवन में कुछ नहीं किया तो मुझे हाउस वाइफ बनना पड़ेगा। हाउस वाइफ न बनने के लिए पूजा ने लावण्या द लेबल ब्रांड की शुरुआत की।

मुझे खुद को साबित करना चाहती थी। मैंने कपड़ों का काम शुरू कर दिया। मार्केट से कपड़ा लिया और स्टिचिंग डिजाइन लेकर भीलवाड़ा आ गई। 2018 में लावण्या द लेबल नाम की वेबसाइट बनाई। एक मशीन मंगाई और कपड़े सिलने के लिए एक मास्टर रखा। भीलवाड़ा में आकर देखा कि यहां वुमन इंडस्ट्री नहीं है। दोबारा यहां आकर अपना सेटअप बनाना मुश्किल रहा। जयपुर के कारीगर भीलवाड़ा आना नहीं चाह रहे थे फिर मैंने बंगाल से कारीगर बुलाए, उन्हें वेतन दिया और फिर हमारा काम शुरू हुआ। टेक्सटाइल का मेरा बैकग्राउंड नहीं है और न ही मैंने इस फील्ड में पढ़ाई-लिखाई की है। लेकिन शौक था और उसी शौक की वजह से आज करोड़ो का बिजनेस बना है। मेरे लिए टेक्सटाइल इंडस्ट्री बिल्कुल नई थी। इंटरनेट से ही डिजाइनिंग सीखी।

मैने 5 हजार रुपए से लावण्या द लेबल कंपनी शुरू किया। अब मिंत्रा, पिंटरेस्ट और नाइक जैसे ब्रांड के साथ काम कर रहे हैं। वर्तमान समय में कंपनी का 15 करोड़ का टर्नओवर है। कंपनी को ब्रांड बनाने में बहुत मेहनत लगी। मेंटल और फिजिकल दोनों मेहनत लगती है। अब मैं यही कहूंगी की किसी भी काम को शुरू करने में मेहनत तो लगती ही है, लेकिन कभी हार नहीं मानें। अगर आप एक बार परिवार से मदद मांगेंगे तो आपको मदद लेने की आदत पड़ जाएगी। इसलिए खुद के बल पर करें, जो काम करना है।