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सौरव गांगुली की दादागिरी की कहानी, आक्रामक कप्तानी और बेखौफ रवैया से लोकप्रिय हुए दादा

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टीम इंडिया के पूर्व कप्तान और दादा के नाम से लोकप्रिय सौरव गांगुली की गिनती भारतीय क्रिकेट के सबसे महान बल्लेबाजों में होती है। गांगुली ने साल 1996 में टीम इंडिया के लिए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में डेब्यू किया और जल्द ही टीम में अहम खिलाड़ी के रूप में खुद को स्थापित किया। गांगुली आक्रामक कप्तानी और टीम की कामयाबी की ओर ले जाने के लिए जाने जाते थे।

गांगुली एक बल्लेबाज के रूप में दमदार स्ट्रोक प्ले और निरंतर रन बनाने की क्षमता के लिए मशहूर थे। उन्होंने वनडे इंटरनेशनल में 11,000 से ज्यादा और टेस्ट क्रिकेट में 7000 से अधिक रन बनाए हैं, जिनमें 41 शतक शामिल हैं। साल 2008 में लाली ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया। फिलहाल बतौर कमेंटेटर व एक क्रिकेट प्रशासक के रूप में अपनी सेवा दे रहे हैं।

गांगुली अपने खेल के दिनों में एक विवादास्पद खिलाड़ी के तौर पर भी जाने जाते थे, जो अक्सर मौके पर अन्य खिलाड़ियों और अक्षरों के साथ मैदान के बाहर और अंदर झगड़ों में शामिल होते थे। लेकिन इन सबके बावजूद क्रिकेट के प्रति उनके जुनून और प्रतिबद्धता हेतु क्रिकेट फैंस और साथी खिलाड़ियों के द्वारा समान रूप से उनका व्यापक आदर किया गया।

बता दें कि गांगुली पश्चिम बंगाल के कोलकाता के बंगाली परिवार से हैं। उनके पिताजी चंडीदास गांगुली एक सफल बिजनेसमैन थे और उनकी माँ निरूपा गांगुली हाउसवाइफ थीं। गांगुली के दो छोटे भाई सौम्या और स्नेहाशीष हैं।

स्नेहाशीष भी क्रिकेट खेल चुके हैं और सौम्या व्यवसाई हैं। गांगुली की पत्नी का नाम डोना गांगुली है। दोनों की एक बेटी सना गांगुली है।