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बिहार में ईंट-भट्ठे लगाने को लेकर लगी रोक अब हटी, इससे संबंधित जारी हुई नई गाईड-लाइन।

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बिहार में नए ईंट भट्ठे लगाने को लेकर नये मानक निर्धारित किये गये हैं। सरकार की ओर से इस व्यवस्था रोक दी गई थी। अब नये मानक में नयी जिगजैग तकनीक अपनाने को प्राथमिकता दी जा रही है। इसके संबंध में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग की अनुशंसा पर बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद की ओर से निर्देश जारी किया गया। इसके अंतर्गत स्कूल, अस्पताल, सरकारी कार्यालय, 25 पेड़ वाले बगीचे और 200 की आबादी वाले टोलों से ईंट-भट्ठे की दूरी कम से आठ सौ मीटर रहेगी। वहीं दो ईंट-भट्ठे के बीच की दूरी एक किमी होगी।

नये मानक के अनुसार नदियों, वेटलैंड, डैम से ईंट-भट्ठों की दूरी कम से कम 500 मीटर होगी। पानी की कमी वाले स्थलों के साथ टाइगर रिजर्व, वन अभ्यारण्य अथवा राष्ट्रीय पार्क के नजदीक इसे लगाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। इसके साथ ही भट्ठों की क्षमता के अनुसार उनकी चिमनी की ऊंचाई बनाने का निर्देश दिया गया है। इसके साथ ही ईंट-भट्ठे स्वच्छतर तकनीक या वर्टिकल शॉफ्ट पर आधारित होंगे।

खबर के अनुसार केंद्रीय विद्युत प्राधिकारण के अनुसार वर्ष 2017-18 में बिहार में फ्लाइ एश का प्रतिवर्ष उत्पादन 73.8 लाख टन था। एक ईंट के लिए 1.4 किग्रा फ्लाइ एश की आवश्यकता है। ऐसे में उपलब्ध फ्लाइ एश से 300 करोड़ ईंट ही बन सकती है। वहीं लगभग 2200 करोड़ ईंटों की खपत हो रही थी। ऐसे में निर्माण कार्यों में ईंटों की जरूरत पूरी करने के लिए ईंट उत्पादन का निर्णय लिया गया है।

बिहार में इस दौरान लगभग 7500 ईंट निर्माण इकाइयां स्थापित की गई हैं। वहीं फ्लाइ ऐश से ईंट बनाने वाली 500 इकाइयां द्वारा ईंट का निर्माण किया जा रहा है। एक अनुमान के अनुसार एक ईंट भट्ठे की वार्षिक उत्पादन क्षमता 30 लाख ईंट प्रतिवर्ष है। ऐसे में 2200 करोड़ ईंट का निर्माण किया जाता है। इसके साथ ही भवन निर्माण में इनकी खपत भी हो जाती है। लाल ईंटों को बनाने में मिट्टी की खपत होती है और जमीन की उर्वरा शक्ति प्रभावित होने की आशंका रहती है। इसी वजह से फ्लाइ ऐश से बनी ईंटों का निर्माण बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।

सरकार की ओर से सभी सरकारी भवनों के निर्माण में फ्लाइ ऐश की ईंटों का निर्देश दिया है। ईंट-भट्ठों से राज्य सरकार को वित्तीय वर्ष 2020-21 में जनवरी 2022 तक 52 करोड़ 57 लाख रुपये का राजस्व मिला था।