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बिहार राज्य में कोई 4 तो कोई 7 दिन का बन रहा था CM, लालू परिवार ने 15 तो नीतीश ने 14 साल ऐसे किया राज
बिहार भास्कर डेस्क : बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections) की तारीख घोषित होने के बाद राजनीतिक पार्टियां चुनाव फतह करने में जुट गई हैं। हर कोई जीत का दावा कर रहा है। लेकिन, 1990 से लेकर 2019 तक मतलब करीब 30 वर्षों तक देखा जाए तो बिहार की सत्ता लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad) परिवार या फिर नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के पास रही। बता दें कि दो बार लालू और तीन बार राबड़ी देवी (Rabri Devi तो नीतीश कुमार छह बार बिहार के सीएम बन चुके हैं। वहीं, बिहार की राजनीति के 59 साल के इतिहास पर नजर करें तो 22 लोग सीएम कुर्सी पर बैठे, जिनमें कई नेता तो ऐसे थे, जो गिने दिनों के ही सीएम बने थे, जिनमें सतीश प्रसाद सिंह (Satish Prasad Singh) चार दिन और नीतीश कुमार सात दिन के भी शामिल थे। आइये जानते हैं बिहार के राजनीति के 59 साल में क्या हुआ।
साल 1961 में वैशाली के रहने वाले दीप नारायण सिंह 18 दिन के सीएम बने थे, जबकि उनके बाद राजमहल के बिनोदानंद झा दो साल सात माह और 17 दिन के सीएम बने थे। केबी सहाय ने अच्छी पारी खेली तो पश्चिम चंपारण के केदार पांडेय एक साल 3 माह और 13 दिन के सीएम बने थे। वहीं, बिहार के इकलौते मुस्लिम सीएम अब्दुल गफ्रूर दो साल 3 माह और 9 दिन के मुख्यमंत्री बने थे। (फोटो-अब्दुल गफ्रूर)
भोला नाथ पासवान और मधुबनी के रहने वाले डॉ. जगरन्नाथ मिश्रा तीन-तीन बार बिहार के सीएम बने थे। हालांकि इनके कार्यकाल के दौरान 12 लोग सीएम बने थे। जिनमें सतीश कुमार सिंह 4 दिन, बीपी मंडल 31 दिन के भी सीएम शामिल थे। (फोटो-भोला नाथ पासवान)
1990 से 1997 तक दो बार लालू और 1997 से 2005 तक तीन बार राबड़ी देवी ने सीएम पद की शपथ ली। हालांकि, इस बीच एक बार 3 मार्च 2000 से 10 मार्च 2000 के बीच सात दिनों के लिए नीतीश भी सीएम बने थे।
बताते हैं कि अगस्त, 1999 के गायसल (किशनगंज) रेल हादसे के बाद नीतीश ने रेल मंत्री के पद से नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दिया था। हालांकि, इसके साल भर बाद ही 2000 में समता पार्टी और भाजपा के गठबंधन को बहुमत न होने के बावजूद तत्कालीन राज्यपाल भंडारी ने नीतीश को सीएम पद की शपथ दिला दी। बहुमत नहीं होने से उन्होंने इस्तीफा दे दिया। फिर राबड़ी देवी ने शपथ ली थी।
फरवरी 2005 के चुनाव में किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला और राष्ट्रपति शासन लग गया। 24 नवंबर, 2005 से 24 नवंबर, 2010 के बीच नीतीश की जेडीयू और भाजपा के गठबंधन को पहली बार जनादेश मिला। और इस सरकार ने पांच साल पूरे किए थे।
26 नवंबर, 2010 से 17 मई, 2014 भाजपा-जदयू गठबंधन की फिर से जीत का चुनाव था। दोनों ने सत्ता में वापसी की। 22 फरवरी, 2015 से 19 नवंबर, 2015 मई, 2014 के लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के ठीक एक दिन बाद नीतीश ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। तब नीतीश ने सीएम पद के लिए जीतनराम मांझी को चुना था। लेकिन बात न बनने पर नीतीश ने 8 माह बाद उन्हें हटाकर फिर से सत्ता में वापस आ गए। (फाइल फोटो)
बात अगर वर्ग वार की जाए तो बिहार में 12 सवर्ण चेहरे मुख्यमंत्री बनें। इनमें श्रीकृष्ण सिंह, दीप नारायण सिंह, विनोदानंद झा,केबी सहाय, महामाया प्रसाद सिन्हा, हरिहर प्रसाद सिंह, केदार पाण्डेय,डॉ. जगन्नाथ मिश्रा, चंद्रशेखर सिंह, बिंदेश्वरी दूबे, भागवत झा आजाद, सत्येन्द्र नारायण सिंह शामिल थे। हालांकि इनमें श्रीकृष्ण सिंह ही 9 साल सीएम बने थे, जबकि अन्य नेताओं का कार्यकाल लंबा नहीं था।
बिहार की जनता ने पिछड़े वर्ग से 6 सीएम दिए। इनमें सतीश प्रसाद सिंह, बीपी मंडल, दारोगा प्रसाद राय, लालू प्रसाद, राबड़ी देवी, नीतीश कुमार शामिल थे। इनमें लालू प्रसाद सात साल, उनकी पत्नी राबड़ी देवी आठ साल की सीएम बनीं, जबकि नीतीश कुमार सर्वाधिक 14 साल सीएम पद पर रहें।
बिहार में दलित वर्ग से भी तीन लोग सीएम बनें थे। इनमें भोला पासवान, राम सुन्दर दास और जीतन राम मांझी शामिल थे, जिनमें भोला पासवान तीन बार मुख्यमंत्री बने थे, जबकि मुस्लिम वर्ग से सिर्फ अब्दुल गफूर ही सीएम बनें। जिनका कार्यकाल बहुत लंबा नहीं था।(फाइल फोटो)