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BIHAR

बिहार के मैनचेस्टर के रूप में विख्यात है गया मानपुर, रोजाना लगभग 100 करोड़ के कपड़े का होता है व्यापार

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गया की फल्गु नदी के पूर्वी तट पर स्थित पटवाटोली मुहल्ला देश-विदेश में सूती कपड़ों के उत्पादन के साथ रेशमी वस्त्रों के उत्पादन के लिए विख्यात है। मानपुर के पटवाटोली को वस्त्र उद्योग के मिनी मैनचेस्टर के नाम से भी विख्यात है। साथ ही पटवाटोली देश के प्रमुख औद्योगिक संस्थानों को कुशल इंजीनियर उपलब्ध कराने के लिए भी मशहूर है। प्रति वर्ष पटवाटोली से अधिक संख्या में छात्र जेइइ मेन और एडवांस की पढ़ाई पूर्ण करते हैं। मानपुर सूती वस्त्र उद्योग के माध्यम से प्रतिदिन लगभग 25 हजार कारीगरों को रोजगार उपलब्ध होता है। यहां से निर्मित वस्त्रों को निर्यात कर 100 करोड़ रूपए का व्यापार होता है।

हैंडलूम उद्योग के साथ मानपुर का रेशम वस्त्र उद्योग भी लगभग 400 वर्ष पुराना है। केंद्र सरकार द्वारा औद्योगिक क्रांति के साथ बुनकरों को अत्याधुनिक तकनीक से वस्त्र निर्माण के लिए प्रोत्साहित करने के लिए वर्ष 1956 में मंगल करघा योजना की शुरुआत की गई थी। इस योजना के अंतर्गत 150 बुनकरों के पावर लूम का वितरण किया गया। इसके पश्चात इस उद्योग में मानपुर और गया के नजदीकी क्षेत्रों में रहने वाले कई लोग शामिल हो गए। इस उद्योग में पूर्ण तकनीकी प्रशिक्षण के साथ बाजार के अतिरिक्त व्यापार का ज्ञान नहीं रहने की वजह से पटवा, तांती के अलावा अंसारी समाज के लोग ही इसमें सफल हो सके।

मानपुर में निर्मित सूती वस्त्र की गुणवत्ता काफी अच्छी होती है और साथ ही सस्ती भी होती है। यहां के कपड़े देश के विभिन्न स्थानों में भेजे जाते हैं जिसमें उत्तर प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, झारखंड, नागालैंड, त्रिपुरा, असम, मेघालय के अतिरिक्त बिहार के सभी प्रमुख शहर शामिल हैं। वहीं गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा के ब्रांडेड कपड़े की मांग मानपुर के व्यापारी द्वारा की जाती है। इन कपड़ों को मानपुर के व्यापारी अपनी सुविधा अनुसार दूसरे राज्यों में भी निर्यात करते हैं।

सूती वस्त्र उत्पादन से पूर्व मानपुर सिल्क वस्त्र उत्पादन का केंद्र हुआ करता था। परंतु सिल्क वस्त्र उत्पादन में लागत मूल्य और परिश्रम के आधार पर उचित दाम नहीं मिलने की वजह से धीरे-धीरे यह इसके उद्योग बंद होने लगे। वर्तमान में केवल पांच से 10 घरों में ही सिल्क वस्त्र का उत्पादन हथकरघा की मदद से होता है। फलाहारी पटवा, वस्त्र उत्पादक बताते हैं कि सूती वस्त्र निर्माण के लिए कच्चे माल को बाहर से आयात करना पड़ता है। इसके साथ अत्याधुनिक मशीन उपलब्ध नहीं होने की वजह से उच्च गुणवत्ता वाले कपड़े का निर्माण नहीं हो पाता है।

मानपुर में 12 हजार पावर लूम मशीन के अतिरिक्त सैकड़ों की संख्या में हैंडलूम मशीनें 24 घंटे कार्यरत हैं। इन मशीनों के संचालन के साथ सूत रंगाई और धुलाई के अतिरिक्त कैलेंडरिंग मशीन के संचालन में 25 हजार कामगारों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार उपलब्ध है। यहां बड़े पैमाने पर कपड़ा, गमछा, कफन, बेडशीट, तौलिया, चादर, रजाई खोल, गद्दा कपड़ा के अतिरिक्त पर्दा कपड़ा का निर्माण किया जाता है।