BIHAR
बिहार के किसानों के लिए अच्छी ख़बर, राज्य में ड्रैगन फ्रूट के खेती की शुरुआत, मिलेगी 50 फीसदी सब्सिडी।
बिहार में उत्पादक क्षमता में वृद्धि लाने के लिए नए तकनीकों को लाया गया है। इसकी वजह से दुर्लभ प्रकार के फसलों की खेती भी संभव हुई है। इसमें से एक ड्रैगन फ्रूट है जिसकी खेती के लिए ठंड जलवायु अधिक उपयुक्त मानी जाती है। हालांकि मैदानी क्षेत्रों में भी इस फसल की खेती शुरू की गई है। ड्रैगन फ्रूट की खेती को लेकर किसानों में रुचि लाने के लिए सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं के माध्यम से किसानों को प्रोत्साहित किया जाता है।
इसी बीच किसानों द्वारा ड्रैगन फ्रूट की खेती करने पर सरकार की ओर से 40 प्रतिशत का सब्सिडी दिया जा रहा है। ड्रैगन फ्रूट की एक हेक्टेयर में खेती की लागत 1 लाख 25 हजार रूपए निर्धारित की गई है। इसके अनुसार किसानों को सब्सिडी के रूप में 40 प्रतिशत दिया जाएगा। इस योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए किसान बिहार सरकार के उद्यान विभाग की वेबसाइट http://horticulture.bihar.gov.in/ पर आवेदन कर सकते हैं।
ड्रैगन फ्रूट के लिए अधिक वर्षा की आवश्यकता नहीं होती है। वहीं कम गुणवत्ता वाले मिट्टी में भी यह फ्रूट अच्छी तरह से उग सकता है। एक वर्ष में 50 सेंटिमीटर की बारिश तथा 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान में ड्रैगन फ्रूट की खेती आसानी से की जा सकती है। साथ ही इसकी खेती के अधिक धूप की भी आवश्यकता नहीं होती है। ऐसे में अच्छी फल की खेती के लिए शेड का उपयोग आवश्यक है।
ड्रैगन फ्रूट की खेती की शुरुआत करने के लिए सबसे पूर्व वहां की मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 7 के बीच होनी चाहिए। बालुई मिट्टी में भी ड्रैगन फ्रूट की खाती की जा सकती है। इसकी खेती के लिए सबसे अच्छी कार्बनिक पदार्थ और रेतीली मिट्टी है। ड्रैगन फ्रूट की खेती किसी भी क्षेत्र में की जा सकती है। परंतु ड्रैगन फ्रूट की सबसे अधिक खेती महाराष्ट्र, गुजरात के कुछ इलाकों और राजस्थान में की जाती है। वहीं तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक जैसे राज्यों में भी अधिक संख्या में किसानों द्वारा ड्रैगन फ्रूट की खेती की जाती है।
ड्रैगन फ्रूट एक सीजन में कम से कम तीन बार फल देता ही है। इसके एक फल का भार लगभग 400 ग्राम के नजदीक होता हुआ। इसके एक पौधे में 50 से 60 फल लगते हैं। इस पौधे को रोपने के पश्चात पहले साल से ही ड्रैगन फ्रूट का फल मिलने लगेगा। एक एकड़ में ड्रैगन फ्रूट की खेती से लगभग प्रतिवर्ष आठ से दस लाख रुपये तक की कमाई की जा सकती है। इसके लिए प्रारंभिक समय में चार से पांच लाख रुपये तक खर्च हो सकते हैं। इस खेती में पानी की जरूरत ज्यादा नहीं होने की वजह से किसानों को पानी पर ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ता है। इससे उन्हें काफी लाभ होता है।