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जानें, छठ पूजा में महिलाएं नाक से मांग तक क्यों लगाती हैं सिंदूर?

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छठ पूजा का व्रत सबसे पवित्र और कठिन व्रत है। छठ पूजा का आरंभ 28 अक्टूबर से ही हो गया है। 4 दिनों तक चलने वाले इस पर्व में महिलाएं आपने बच्चे और सुहाग की अभिप्राय के हेतु निर्जला व्रत रखती हैं। यह पर्व मुख्य रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार में मनाया जाता है। यह एक महत्त्वपूर्ण त्योहार है इस व्रत का आरंभ नहाय खाय से होता है एवं उसका समापन सूर्य को अर्घ्य देने और पारण के उपरांत होता है। इस दिन पूजा में नाक तक सिंदूर लगाने का रिवाज़ है। चलिए जानते हैं कि छठ पूजा में सिंदूर का क्या महत्व है।

हिंदू धर्म ग्रंथों के मुताबिक, सिंदूर का सुहाग की पहचान होती है। छठ के दिन महिलाएं नाक तक सिंदूर पति की लंबी आयु के हेतु लगाती हैं। ऐसा बताया जाता है कि यह सिंदूर जितना लंबा होगा, उतनी ही पति की आयु लंबी होगी। कहा जाता है कि लंबा सिंदूर पति के हेतु बेहद ही शुभ होता है। लंबा सिंदूर परिवार में सुख शांति संपन्‍नता की निशानी माना जाता है। इस दिन लंबा सिंदूर लगाने से घर परिवार में संपन्नता आती है। इस दिन सूर्यदेव की पूजा के सहित महिलाएं अपने पति एवं संतान के सुख, शांति तथा लंबी आयु की कामना करते हुए अर्घ्‍य देकर अपने व्रत को सम्पन्न करती हैं।

ऐसी मान्यता है कि नारंगी रंग का सिंदूर पति की लंबी उम्र के सहित उनके व्यवसाय में भी आधिक्य लाता है। उनको हर राह में कामयाबी प्राप्त होती है। वैवाहिक जीवन भी खुशहाल रहता है। धर्म ग्रंथों के मुताबिक नारंगी रंग हनुमान जी का भी शुभ रंग है।

महाभारत काल में जब पांडव आपने सारे राजपाट को जुए में हार गए थे, तब द्रौपदी के द्वारा छठ का व्रत रखा गया था। द्रौपदी के व्रत से प्रसादयुक्त होकर षष्ठी देवी ने पांडवों को उनका राजपाट वापस दिलवाया दिया था। उसी प्रकार से छठ का व्रत करने से लोगों के घरों में सुख-समृद्धि, संपन्नता और खुशहाली सदेव बनी रहती है। हालाकि पौराणिक लोक कथा के अनुसार, महाभारत काल में सूर्य पुत्र कर्ण ने सबसे पहले सूर्य देव की पूजा आरंभ की थी। बताया जाता है कि घंटों पानी में खड़े होकर दानवीर कर्ण सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य देव की कृपादृष्टि से कर्ण एक महान शूरवीर बने थे। आज भी छठ में अर्घ्य देने की यही प्रथा प्रचलित है।