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कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को नेपाल के नए नक्शे में नेपाली राष्ट्रपति द्वारा मंज़ूरी
नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को शामिल कर नेपाल के नक्शे को बदलने के लिए संविधान संशोधन विधेयक पर हस्ताक्षर कर दिया है। इसके साथ ही नेपाल के नए नक़्शे को सरकारी मंज़ूरी मिल गई है। नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने नेपाल के नक़्शे को बदलने संबंधी संविधान संशोधन बिल पर हस्ताक्षर कर दिया है।
इससे पहले शनिवार को नेपाल की संसद ने लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को अपना बताने वाले नक्शे पर मुहर लगा दी थी। ये तीनों भारतीय क्षेत्र पर नेपाल की दावेदारी के लिए नेपाल की संसद में लाया गया संविधान संशोधन विधेयक भी ध्वनिमत से पारित हो गया था।
विपक्षी पार्टियों ने भी नए नक्शे के लिए सरकार को समर्थन देने का एलान किया था और इसीलिए एक भी वोट विरोध में नहीं पड़े थे। इस प्रकार नेपाली संसद ने विवादित नक्शे को भी मंजूरी देकर यह साफ जाहिर कर दिया कि ओली सरकार चीन के इशारे पर काम कर रही है।
नेपाल की संसद प्रतिनिधि सभा ने देश के नए और विवादित नक्शे को लेकर पेश किए गए संविधान संशोधन विधेयक को सर्वसम्मति से पारित कर दिया था। यह संविधान संशोधन विधेयक गुरूवार को राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी के पास अनुमोदन के लिए भेजा गया जिसपर उन्होंने हस्ताक्षर कर दिए हैं। उनके हस्ताक्षर करते ही नया नक्शा कानून की शक्ल ले लिया है।
बता दें कि इस नए नक्शे में लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को नेपाल ने अपने क्षेत्र में दिखाया है। नेपाल शुरू से मित्र राष्ट्र रहा है, लेकिन ओली की सरकार बनने के बाद नेपाल चीन का पिछलग्गू बन गया है। अब 395 किलोमीटर भारतीय इलाके पर नेपाल ने अपना दावा पेशकर अपनी मंशा जाहिर कर दी है। हालांकि भारत एक इंच भी जमीन नेपाल को देने को तैयार नहीं है, लेकिन चीन के इशारे पर वह भारत को परेशान करने के लिए यह सब कुचक्र रचा है।
आपको बता दें कि भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जब लिपुलेख से कैलाश मानसरोवर जाने वाले रास्ते का उद्घाटन किया था तभी नेपाल ने इसका विरोध किया था। उसके बाद 18 मई को नेपाल ने नए नक्शा जारी कर दिया। भारत ने हाल में इसपर क्षोभ जाहिर करते हुए कहा कि क्षेत्र पर कृत्रिम रूप से बढ़ा-चढ़ाकर दावा करने को वह स्वीकार नहीं करेगा और उसने पड़ोसी देश से कहा कि वह इस तरह के अनुचित दावे से बचे, लेकिन भारत की अपील को दरकिनार कर राष्ट्रपति ने भी इसपर अपनी सहमति जता दी है।
नेपाल के इस कदम से भारत के साथ उसके रिश्तों पर गहरा असर पड़ेगा। हालांकि भारत ने साफ कर दिया है कि वह अपनी संप्रभुता से समझौता नहीं करेगा। दरअसल, नेपाली कम्यूनिस्ट पार्टी में पुष्प कमल दहल और सीनियर लीडर माधव कुमार नेपाल के खेमे से ओली के इस्तीफे की मांग की जा रही थी, लेकिन अब यहां सन्नाटा छाया हुआ है। माधव के एक साथी के मुताबिक देश में हालात गंभीर हैं और ऐसे में पीएम का इस्तीफा मांगना अनैतिक होगा।
हालांकि विरोधी खेमे का साफ कहना है कि इस मांग को खत्म नहीं किया गया है। बजट और नए नक्शे के पारित होने तक के लिए रोक दिया गया था। अब जबकि राष्ट्रपति ने इसपर हस्ताक्षर कर दिए हैं तो हो सकता है कि केपी शर्मा ओली की सरकार के खिलाफ फिर एक बारि विपक्ष और उनकी पार्टी के ही कुछ सीनियर लीडर मोर्चा खोलें।
ऐसे में ओली को जल्द ही इस्तीफा भी देना पड़ सकता है। भारत के तीन इलाकों को नेपाल में शामिल करने का राष्ट्रव्यापी अभियान चलाकर ओली ने विपक्ष का भी समर्थन तो कुछ वक्त के लिए हासिल कर लिया, लेकिन अब एक बार फिर विपक्ष ओली के इस्तीफे के लिए मोर्चा खोल सकता है।
दरअसल, मधेसी पार्टियों ने बिल पर असहमति जताई थी। इसी कारण 27 मई को ओली संविधान संशोधन बिल पेश नहीं कर पाए थे। इसके बाद प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस मामले को राष्ट्रवाद से जोड़कर समर्थन हासिल करने की मुहिम चलाई। इसके चलते विपक्षी पार्टियों को झुकना पड़ा और उन्होंने इस मामले पर सरकार का समर्थन किया।